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लघुकथाएँ - देश - डॉ. शरद सिंह
भिखारी

वह भिखारिन थी। जवान और सुन्दर भिखारिन। वह एक कार के पहुँची और उसने कार के भीतर बैठे आदमी से गिड़गिड़ाते हुए कहा- "दो दिन से इस पापी पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं पड़ा है....कुछ दे दो बाबूजी !...भगवान तुम्हारा भला करेगा, बाबूजी !
भिखारिन की बात सुन कर कार में बैठे हुए आदमी ने एक भरपूर नज़र भिखारिन के शरीर पर डाली और ललचाए हुए स्वर में बोला- ...और बदले में तुम मुझे क्या दोगी ?
यह सुनते ही भिखारिन ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा- "धत् तेरे की ! मैं भी किस भिखारी से भीख माँगने लगी ?
और उस आदमी ने झेंप कर अपनी कार आगे बढ़ा ली।

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