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लघुकथाएँ - देश - सतीशराज पुष्करणा
अन्तश्चेतना

कक्षा पांच में प्रथम पीरियड नैतिक शिक्षा का चल रहा है। शिक्षक पढ़ा रहे हैं कि हमें माता–पिता के प्रति आभारी होना चाहिए जो हमें पालते हैं, पढ़ाते–लिखाते हैं तथा समाज में रहन–सहन का ढंग सीखते हैं। माता तो पिता से भी महान् है जो नौ माह का बच्चे को गर्भ में रखती है, जन्म देती है और प्राथमिक शिक्षा का श्रीगणेश करती है। अत : माता का स्थान पिता ही नहीं, ईश्वर से भी ऊपर है।
अभिषेक बहुत ही मेधावी छात्र है। कक्षा में सदैव आगे रहता है। प्रत्येक शिक्षक का प्रिय विद्यार्थी है। किन्तु आज! आज वह शरीर से कक्षा में है किन्तु मन किसी अजीब उलझन में है। शिक्षक द्वारा पढ़ाए गए पाठ के कुछ अंशों पर उसका ध्यान जा सका है, कुछ पर नहीं। किन्तु जो अंश उसके कान में पड़े हैं, उन्होंने उसे दुखी ही नहीं किया, आत्मग्लानि से भी भर दिया है। और अब उसका मन पूरी तरह से उचट गया है। रह–रहकर उसका हाथ नेकर की जेब में चला जाता है और फिर उसमें से ऐसे निकलता है, जैसे जेब के भीतर से उसे कोई डंक–सा लगा हो। उसकी जेब में उसकी मां का झुमका है, सोने का झुमका।
उसे लगता है कि वह अभी इसी वक्त घर भाग जाए और जाकर यह झुमका मां के चरणों में रख दे। रह–रहकर एक तरफ शिक्षक की बातें उसके मन–मस्तिष्क पर उभरती हैं, तो दूसरी तरफ मां का रोता हुआ परेशान चेहरा उसके समक्ष उपस्थित हो जाता है। वह सोचने लगता है–मां अपना एक झुमका ढूंढ़ रही होगी। झुमका उसे मिल नहीं रहा होगा। वह परेशान होगी। चिन्ता कर रही होगी। पिता की डांट की कल्पना से वह सिहर–सिहर जा रही होगी। सोने की वस्तु खोना अशुभ माना जाता है–यों भी कीमती वस्तु,उसपर भी अपनी वस्तु! वह जितना सोचता जाता है, दुखी होता जाता है।
उसे ख्याल आता है, मां उसके सभ बहन–भाइयों में उसे ही अधिक चाहती है। वह अपने बहन–भाइयों में सबसे बड़ा है। कोई भी खाने की चीज हो, उसे सबसे पहले, सबसे ज्यादा देती है। उसे स्मरण हो आया एक बार जब उसके पेट में दर्द उठा था, तो मां ने रोते–रोते आकाश सिर पर उठा लिया था। मां तब तक आराम से नहीं बैठी थी, जब तक उसे आराम नहीं आ गया। यह सोच–सोचकर उसका मन ग्लानि की पराकाष्ठा तक भर आया। वह रुआंसा हो आया। हल्के–हल्के सिसकने भी लगा। पास बैठे लड़के ने जब अभिषेक की आँखों में आँसू देखे तो उठकर खड़ा हो गया, ‘‘सर! अभिषेक रो रहा है।’’
‘‘रो रहा है! मगर क्यों? अभिषेक खड़े हो जाओ, बताओ बेटे! ! तुम रो क्यों रहे हो? तुम्हें किसी ने कुछ कहा है? इधर आओ, मेरे पास।’’
इतना सुनते ही तो वह फफक पड़ा और अविरल अश्रुधार वह निकली। हिचकियाँ निकलने लगीं। शिक्षक उसे प्यार करने लगे। उसके सिर पर हाथ फेरा। उसकी हिचकियाँ थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं। शिक्षक ने उसे सीने से लगाया और रोने दिया। शिक्षक समझ गया आज अवश्य ही इसके साथ कोई विशेष बात है, अन्यथा इतना मेधावी लड़का......यह तो सदैव प्रसन्न रहने एवं चहकने वाला लड़का है। आज इसका इस प्रकार रोना कोई अर्थ अवश्य रखता है।
पीरियड समाप्त होने को आया। शिक्षक ने कहा, ‘‘बेटे! तुम एक मेधावी छात्र हो। प्रत्येक शिक्षक तुम पर गर्व करता है। तुम्हारे इस प्रकार रोने ने मुझे चिन्ता में डाल दिया है। तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर मैं भी भावुक हो उठा हूँ। बेटे, जल्दी बताओ, क्या बात है?’’
अभिषेक ने अपनी नेकर की जेब से झुमका निकालकर शिक्षक के हाथ पर रख दिया।
‘‘यह क्या! झुमका?’’
‘‘यस सर! यह झुमका मेरी मां का है।’’
‘‘तो....?’’
‘‘सर! पतंग–डोर खरीदने की गरज से मैंने इसे चुरा लिया था।’’
‘‘तब!’’
‘‘सर! एक तो मैंने जब से इस झुमके को उठाया है, तभी से परेशान हूँ। और फिर आज क्लास में आप के पढ़ाए पाठ ने तो मुझे और अधिक ग्लानि से भर दिया है। रह–रहकर मुझे मां का चेहरा परेशान एवं रोता हुआ नजर आता है सर। आज मेरा दिल क्लास में बिलकुल नहीं लग रहा है। बस रोने का मन करता है। मुझे क्षमा कर दीजिए, सर।’’
‘‘बेटे तुम मेधावी ही नहीं, समझदार भी हो, और बहादुर भी। आज से मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति और अधिक प्यार बढ़ गया है। चलो! घर चलो! मैं। तुम्हारे साथ चलता हूँ।’’

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