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लघुकथाएँ - देश - सतीशराज पुष्करणा
जमीन से जुड़कर

जब सारे बच्चे गए थे, तो कई समस्याओं एवं उलझनों ने उसे आ घेरा। वह अपनी पत्नी का अभाव महसूस करने लगा। वह सोचने लगा कि वह कितनी समझदार थी, मैं जब कभी परेशान होता, वह मेरे साथ बैठकर मेरी समस्याओं को चुटकी बजाते ही हल कर दिया करती थी। इस तरह उसने मुझे पंगु बना दिया था। आज मेरी स्थिति यह है कि मुझे अँधेरी गुफाओं में कोई रास्ता ही सुझाई नहीं देता है। सोचते–सोचते वह अपने अतीत के पच्चीस वर्षो पूर्व की गहराइयों में डूब गया।
वह कोई बहुत बड़ा फुटबॉलर तो नहीं, किन्तु अपने शहर में तो वह अच्छे प्लेयर्स में अवश्य ही गिना जाता था। तब हमारा चार्जमैन भी प्लेयर था। वह कद्र भी करता था। अत: उसने कभी कोई ऐसा काम नहीं बताया था कि उसके कपड़े काले या दागदार हो जाएँ। धीरे–धीरे उसे काम करने की आदत ही न रही, बस चॉर्जमैन के साथ उसके कार्यालय में बैठकर फुटबॉल की चर्चा करना, कभी–कभार कुछ लिखने–पढ़ने का काम दे देता था। दिन बहुत अच्छे व्यतीत हो रहे कि उस चार्जमैन का ट्रांसफर हो गया, किन्तु इसकी जगह पर मुखर्जी आ गया। वह मेरे उजले कपड़े बर्दाश्त नहीं कर पाता था। वह जब न तब उसे इंजन के बॉयलर में घुसने का ही आदेश देता था। परिणामत: दिन में दो बार उसे कपड़े बदलने पड़ते थे। वेतन के अनुसार धोबी का यह खर्च कर्ज के रूप में बदलने लगा।
अहं को लड़ाई बढ़ती ही जा रही थी। मुखर्जी था....वह तो अपने अहं को संतुष्ट करने में सफल रहा। किन्तु वह मेरा अहं तोड़ता जा रहा था।
आज मुखर्जी का भी ट्रांसफर हो गय। मेरे लिए खुशी की बात अवश्य थी किन्तु अब मेरी समस्या यह है कि मैं अब भी अपने अहं को बरकरार रखूँ या तोड़ दूँ? अभी वह इतना सोच ही पाया था कि उसे लगा उसकी पत्नी का प्यार भरा स्वर उसके अन्तस को कह रहा है, ‘‘कल से अपनी ड्यूटी के ही कपड़े पहनकर जाया करो अब तो रिटायर भी होने वाले हो। प्लेयर भी नहीं हो। यह नया साहब है, अभी उसके साथ तो किसी अ का प्रश्न नहीं जुड़ा है। नाहक अहं पालकर अपने को परेशान क्यों करते हो? नीचे से ऊपर जाना सुख देता है किन्तु ऊपर से नीचे आने में दुख: होता है, तो क्यों न जमीन से ही जुड़े रहो, यहाँ गिरने का खतरा कभी नहीं होगा।’’ आखिरी वाक्य ने उसे बहुत राहत दी। वह सहज हो गया और उसकी पलकें बोझिल होने लगीं। बत्ती बुझाकर उसने चादर से अपने बदन को ढक लिया।

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