विनिता की शक्ल कैसी है? कहाँ रहती है? कोई विनिता सचमुच है भी या नहीं? या यह भी तुम्हारी और बातों कीतरह एक गप है?
जब भी कोई दोस्त उससे पूछता, तो वह उदास हो उठता; विनिता का नाम ही ऐसा था कि मौसम अच्छा हो, मौसम खराब हो, सबको वह विनिता से जोड़कर देखता।
शराब का एक पैग अंदर जाते ही वह दोस्तों से परे हटकर एक अकेला विनिता का नाम लेकर घण्टों जाने क्या बड़बड़ाता रहता।
बरसों बीत गए।
उम्र उसे देखती रही। वह बूढ़ा हो गया, पर विनिता अब भी वैसे ही थी। उम्र की कोई खरोंच उसके चेहरे पर नहीं आई थी। वह अब भी बीस–बाइस साल की लड़की में विनिता को ढूँढ़ता। वह रोज उसके सपनों में आती। रात के अँधेरे में धीमे से उसके बगल में आकर लेट जाती और उसे चूमती। ठीक वैसे ही, जैसे बीस बरस की उम्र में चूमा था।
आँखें मूँदे वह चुप लेटा रहता था। यह सपना नहीं, सच होता। सुबह वह ताजादम उठता। विनिता की गंध सराबोर कर देती और समूचे दिन उस गंध में लिपटा वह उड़ा–उड़ा फिरता।
‘इसकी टाँगें विनिता जैसी है।’ किसी लड़ी को देखकर वह कहता।
‘अरे, यह बालों की लट। पूछो मत, हूबहू है।’ कहकर किसी दूसरी लड़की के पीछे चल देता।
महीनों तक शाम पाँच बज एक लड़की को उसके दोपहर दफ्तर से छूटने पर पीछे–पीछे अकेले रोज उसके घर तक छोड़ने जाता रहा, क्योंकि उसमें विनिता की कई खूबियाँ थीं।
उसे पसंद आती उन तमाम सुंदर लड़कियों में विनिता की कोई–न–कोई विशेषता जरूर होती और वह विस्तार से उनकी विशेषताओं का बखान करते हुए विनिता से मिलान करता।
विनिता है भी या नहीं। कभी थी भी या नहीं। दोस्तों को ताज्जुब होता, क्योंकि उसका कोई चि उन्हें कभी दिखाई नहीं दिया। फिर वे उस पर अविश्वास यों कैसे करते!
इसी तरह एक दिन उसका अंतिम समय आ गया।
‘अब तो विनिता जरूर आएगी।’ दोस्तों ने सोचा, क्योंकि अब भी वह उसी की बातें कर रहा था।
और एक दिन वह मर गया। अंतिम समय उसके मुँह से सिफर् एक वाक्य निकला, ‘‘अच्छा, तो अलविदा विनिता!’’
लोगों ने अगल–बगल झाँककर देखा, वहाँ कोई विनिता नहीं थी।
क्या सचमुच कभी कोई विनिता थी?