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लघुकथाएँ - संचयन - सत्यनारायण
आईना
आले में आईना रखा रहता। धुँधला,पर हाथ फेरते ही एकदम साफ पिता रोज सवेरे उसके सामने खड़े हो जाते और आहिस्ता–आहिस्ता अपनी दाढ़ी बनाते। सब–कुछ एक ही क्रम में। वह आईना पिता का आईना था। वे सब उसे पिता का आईना कहकर पुकारते, क्योंकि वे किसी को उसे हाथ नहीं लगाने देते थे। कई बार उनकी अनुपस्थिति में वह आईने के सामने खड़े होकर खुद को देखता तो उसमें उसकी जगह पिता का चेहरा तैरने लगता। वह घबराकर वहाँ से हट जाता।
‘जब मैं बड़ा हो जाऊँगा।’ वह सोचता।
‘इस आईने में जरूर कोई खास बात है।’ मन में गुनगुनाता।
‘बड़े हो जाओ तब तुम भी इससे अपनी दाढ़ी बनाना। वह तुम्हारे दादा का है।’ एक दिन पिता ने उससे कहा।
‘पिता का आईना।’ वह हैरान होकर उसे बार–बार छूतां
अपने अन्तिम दिनों में पिता को कम सूझने लगा था। सब–कुछ धुँधला–धुँधला। लेकिन सुबह–सवेरे का क्रम कभी भंग नहीं हुआ। वे निश्चित समय आईने के सामने जाकर खड़े हो जाते। उसे अपनी बंडी से रगड़कर साफ करते और ब्रश से झाग उपजाकर धीरे–धीरे दाढ़ी बनाते।
एक दिन पिता चल बसे। उसके न आँसू आए न वह दहाड़ मारकर रोया। वह सिर्फ़ सन्न–सा सब देखता रहा और चुप हो गया। बहुत कोशिश की, पर आँसू का एक कतरा बाहर नहीं निकला। परिवार के लोग हैरानी से उसे देखते रहे थे।
अब वह बड़ा हो गया था। पता ही नहीं चला धीरे–धीरे कब उसने पिता का स्थान ले लिया। रोज सवेरे उसी तरह उसी आईने के सामने खड़ा होकर दाढ़ीी बनाता। शुरू–शुरू में उसमें से झाँकता पिता का चेहरा दिखाई देता। वह डर जाता। धीरे–धीरे उसका और पिता का चेहरा एकमेक हो गया। कई बार वह तय नहीं कर पता कि वह पिता की दाढ़ी बना रहा है या अपनी।
‘तू अभी बच्चा है।’ कभी ब्लेड से कट लग जाता तो पिता आईने से निकलकर कहते।
‘तुम ठीक अपने पिता पर गए हो। तुम्हारा चेहरा, हाव–भाव, आदतें सब कुछ वैसे हीहैं। यकीन न हो तो फोटो से मिलान करके देख लो।’ पत्नी अक्सर मजाक करती।
उस दिन वह देर से उठा था। पिछले कुछ दिनों से आँखों से धुँधला दिखाई देने लगा था। आईना भी वैसा ही हो गया था। लेकिन हाथ इतने अभ्यस्त हो गए थे कि बिना आईना देखे वह दाढ़ी बना लेता था।
उस दिन देर रात तक नींद नहीं आई थी। सुबह–सवेरे उनींदे की हालत में आईने तक गया। वह वहीं रखा था, जहाँ रोज रहता था। पर आज उसके हाथ जाने क्यों काँप रहे थे। गालों पर साबुन के झाग लथेड़कर उसने आईना उठाया और बनियान से पोंछा। इसी बीच हाथ से फिसलकर आईना फर्श पर कई टुकड़ों में बिखर गया।
वह थर–थर काँपने लगा और वहीं बैठकर जोर से रोने लगा जैसे उसके पिता आज मरे हों।

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