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लघुकथाएँ - देश - शशांक
राजकीय

तना वाकई स्तंभ था। अटल। बहुत परिधि वाला। खुरदुरा। उसके पेट की ऊँचाई पर चूने से और गेरू से पट्टियाँ बनी थीं। पहले सफेद,गेरू,सफेद। आदमी की ऊँचाई। पेड़ ऐसी टी शर्ट पहने राजकीय था। सड़क की सीमा से झूमते हुए पेड़ों की क़तार चली गई। वे सी टी शर्ट पहने थे। कुछ बहुत बड़े मोटे वृक्ष टी शर्ट पहने अटपटे लगते। राजकीय होना उनमें अनमनापन–सा था। शर्ट की यूनीफार्म थी और उनमें वे नौजवान से बनाए गए थे। उन्हें कहाँ मालूम था कि किसी पीली जर्जर पंजी में इनकी प्रविष्टि है और वे बड़ी संख्या में जाने जाते हैं।
उनकी क़तार में लगभग एक ही प्रजाति थी फिर भी उनके सामने के हिस्से में जो सड़क के सामने थी आयताकार छाल उखाड़ ली गई थी। अब वह आयताकार खुदा हुआ प्राकृतिक अंग लगता। सभी चोट मार के प्रहार से कटाव अब प्राकृतिक बन गए थे। नैसर्गिक। उन सब में, आयताकार हद के अंदर उनकी प्रजाति लिखी रही होगी। अब नहीं है। वे यूनीफ़ार्म पर मैडल थे। टी शर्ट पर अनजानी कंपनी का नाम।
बहुत बूढ़े पेड़ की टी शर्ट में एक डंठल निकल आया था। उस पर तीन पत्तियाँ। टी शर्ट पर एक ज़रूरी नमूना। यह बात पंजी पर बतलाई नहीं गई थी। पतली कमर वाले अनेक पेड़ इन सबको घेेरे हुए थे। पीछे से। उनकी टी शर्ट नहीं थी। वे मनमाने तरीके़ से ऊपर बढ़ रहे थे। जितनी पत्तियाँ,उनसे कम डालें नहीं। अनेक डगालों अनेक पत्तियों का चिलमन। वहीं, अपनी अकेली काया में वे वृक्ष राजकीय थे।
अकेले स्तंभ पर चीटिंयाँ थीं। लाल पूँछ वाले कीड़े सरसरा रहे थे। पीली काया पर काली बूँद वाली इल्लियाँ घर बनाकर घुस रही थीं। पत्तों के बीच में हलचल थी। जैसे उन्हें कोई झिंझोड़ रहा हो। उनकी काया से गिरने लगे। पसीना नहीं, उनके संजोए फल। फल अपने समय की प्रतीक्षा करते थे। इमली,आम, महुआ। समय बारी–बारी से उन्हें गिराता। ज़मीन पर एक परत बन जाती। । वृक्ष लगातार झिंझोड़े जाते, वे झरते जाते, इसी समय ट्रक आता है। मज़दूर कूदते हैं।
ठेकेदार सामने से उतरता है। ड्राइवर से कहता है। इस साल भरपूर फसल हुई है। अच्छा है।
‘‘साहब फसल तो खेत में होती है!’’
‘‘अरे ! ठेका है यार ठेका। समय देखकर बोली लगाओ। जो होने वाला है उसका ठेका। हद है! जो है उसका नहीं।’’
ड्राइवर चाचाल है, ये सब साब आपके डर के मारे जादा हो रहे है। है कि नहीं? ठेकेदार हँसता है। ठेके का कोई भरोसा नहीं।
ऊपर पेड़ अपने आप झंझा में नहीं हैं। लोग कूदते हैं। उनके बदन पसीने से काले चमक रहे हैं।
‘‘बस हो गया?’’
ठेकेदार पत्तों में खोजता है।
‘‘अब कुछ नहीं है।’’
वे एक साथ चिल्लाते हैं। जो ट्रक से कूदे थे वे टोकरियाँ भर रहे थे। झुके–झुके। राजकीय पेड़ की आड़ में पेड़ से कूदने वाला एक बड़ा आम धोती से निकालता है। चमकदार। आम के मुँह से निकली लार। चेंपी। ट्रक से कूदने वाली तन्मय होकर खा रही है। राजकीय पेड़ से छुपकर।
‘‘इस साल खूब हुए।’’
‘‘ठेके में कम हों या जादा। हमें क्या?’’

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