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बुश्शर्ट

सब पूछिए तो मुझे शर्मा जी से अत्यधिक जलन और ईर्ष्या थी। सोचता था-इन्हें इतने पैसे कहां से प्राप्त हो जाते हैं कि हर रोज नई बुश्शर्ट पहन कर आया करते हैं?
मैं और शर्माजी एक ही विद्यालय में टीचर थे: और दोनों ही आर्ट्स के टीचर ! सो बच्चे तो हमसे ट्यूशन पढ़ने से रहे। न मेरा कोई आमदनी का ऊपरी जरिया था और न शर्मा जी का। मैं तो बस दो ही बुश्शर्टों को रगड़ रहा था।
आज तो नई बुशशर्ठ शर्मा जी पर कुछ जंच रही थी। मुझसे रहा न गया, पूछ ही लिया,"शर्मा जी, कितने में खरीदी यह बुश्शर्ट?"
वह बड़े गर्व से बोले, "पच्चीस रूपए में"
मैं चौंक सा गया, "मात्र पच्चीस रूपए! " एक क्षण रुककर मैंने कहा, "कहां से लिया,आपने?...मुझे भी एक दिलवा दीजिए न, "
इस पर वह बोले, "चलिए, स्कूल से लौटते हुए यूनिवर्सिटी कैम्पस होकर ही चलते हैं,…वहीं इस तरह की इम्पोटैंड बुश्शर्ट मिलती हैं,…बिल्कुल कैम्पस के सामने ही।"
मैं कुछ चौंक सा पड़ा, "विदेशी कपड़े….और इतनी सस्ती कीमत में।"
अचानक मेरी नजर शर्माजी की बुश्शर्ट की जेब के समीप पड़ी, कुछ फटा हुआ लग रहा था और मैंने बुश्शर्ट खरीदने का इरादा बदल दिया।
अगले दिन जब शर्मा जी से भेंट हुई तो उन्होंने पूछा, "क्या कल आपने बुश्शर्ट खरीद लिया था? "
मैंने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, "खरीद तो न पाया, पर हां…मैंने एक राज का पता कर लिया।"
इस पर शर्मा जी तुनक उठे, "क्या पता किया आपने?...यही न कि विदेशों में लोग मर जाते हैं तो मुर्दों से कपड़े उतार कर बेच दिए जाते हैं,…ये वही हैं,…मैं विदेशियों के उतारे हुए पुराने कपड़े पहनता हूं।"
मुझे हरगिज पता न था कि शर्मा जी इस तरह गुस्सा करेंगे। वह अब भी बोल रहे थे, "…जब हमारा संविधान ही विदेशियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा में लिखा जा सकता है….जब हमारी सरकार विदेशियों के जंग खाए, पुराने जहाज और तोप खरीद सकती है,…जब हमारे यहां के लोग विदेश की बनी सेक्स की जूठी-बासी फिल्में चटखारे ले-लेकर देख सकते हैं, तो…तो, तब कुछ नहीं।… और एक गरीब अध्यापक ने अपने तन को ढकने के लिए विदेशियों द्वारा उतारी गई बुश्शर्ट क्या पहन ली,…आपसे रहा न गया।"

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