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लघुकथाएँ - देश - प्रहलाद श्रीमाली
प्रतिक्रिया

तड़ाक! हमीदा ने करारा चॉटा रसीद किया। सलीम बुक्का फाड़कर रोने लगा। एकाग्रता भंग होने से अहमद मन ही मन बुरी तरह झल्लाया। पर उसने धैर्य से काम लिया।
‘‘अरे बच्चा है। जिद तो करेगा ही। नादान जो ठहरा। तुम इतना भी नहीं जानती। जरा प्यार से समझाओ उसे देख लेना, मान जाएगा। अब फिर इस पर हाथ मन उठाना।’’
अहमद आज लगभग सारा दिन टी.वी. देख रहा था। आगरा में भारत–पाक के बीच चल रही शिखर वार्ता को लेकर बेहद उत्साहित था वह। कश्मीर से पाक अधिकृत कश्मीर तक का दशकों से बन्द सड़क मार्ग पुन: खुलने की सम्भावना उसे बड़ा सुकून दे रही थी।
हमीदा को मिठास भरी हिदायत देकर उसने फिर टी.वी. पर नजर टिका दी थी। विभिन्न न्यूज बदलते हुए वह आम जनता, पत्रकार और राजनेताओं के आशा भरे विचार सुन–सुनकर आनन्दित हो रहा था।
वार्ता लम्बी खिंचती जा रही थी। इतनी देर तक वह जिन्दगी में पहली बार टी.वी. से चिपका रहा था। वार्ता असफल होने के समाचार देर रात प्राप्त हुए। वह आँखें फाड़–फाड़कर टी.वी. स्क्रीन घूरता रहा। देखने–सुनने के बावजूद उसे विश्वास नहीं हो रहा था। इतना तामझाम,तैयारियाँ। कई दिनों से लोगों के मन में उमंग,हलचल और एकदम ऐसी बेरूखी। रात भर उसे नींद नहीं आई।
सुबह होते–होते मुश्किल से आँख लगी ही थी कि हमीदा ने झकझोर कर उठाया। ‘‘लो अब तुम ही समझाओ अपने लाड़ले को। मैं तो बहला–बहलाकर हार गईं। मानता ही नहीं। उठते ही फिर वही बेतुकी जिद पकड़ कर रोए जा रहा है।’’
तड़ाक! अबके अहमद ने जोरदार झापड़ मारा।
रोना भूलकर सलीम गाल सहला रहा था।

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