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आखिर मनोहरलाल जी का मंत्री बनने का पुराना सपना साकार हो ही गया। शपथ-समारोह के बाद वह मंत्रालय के सुसज्जित कार्यालय में पहुंचे तो वहाँ उनके प्रशंसकों का ताँता लगा हुआ था। सभी उन्हें बधाई दे रहे थे।
देश-विदेश के प्रतिष्ठित पत्रों के पत्रकार और संवाददाता भी वहां उपस्थित थे। एक संवाददाता ने उनसे पूछा, "मंत्री बनने के बाद आप अपने मंत्रालय में क्या सुधार लाना चाहेंगे?"
उन्होंने तत्काल उत्तर दिया, "सबसे पहले मैं फिजूलखर्ची को तत्काल बंद करूँगा।"
"देश और देश की जनता के बारे में आपको क्या कहना है?"
इस प्रश्न पर वह नेताई मुद्रा में आ गए और धारा-प्रवाह बोलने लगे, "देश में विकास की गति अभी बहुत धीमी है। देश को यदि उन्नति और प्रगति के पथ पर ले-जाना है तो हमें विज्ञान और तकनालोजी का सहारा लेना होगा। तभी हम इक्कीसवीं सदी में पहुँच सकेंगे। इसके लिए देश की जनता को धार्मिक अंधविश्वासों से ऊपर उठाना होगा।"
तभी मंत्रीजी के निजी सहायक ने फोन पर बजर देकर सूचित किया कि उनसे छत्तरगढ़ वाले आत्मानंदजी महाराज मिलना चाहते हैं। मंत्री महोदय ने कमरे में उपस्थित सभी लोगों से क्षमा-याचना की और वे सब कमरे से बाहर चले गए।
महाराज के कमरे में प्रवेश करते ही, मंत्री महोदय आगे बढ़कर उनके चरणस्पर्श करते हुए बोले, "महाराज, मैं तो स्वयं आपसे मिलने को आतुर था। यह सब आपकी कृपा का ही फल है कि आज…."
आशीष की मुद्रा में महाराज ने अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाया और फिर चुपचाप कुर्सी पर बैठ गए। उनकी शांत, गहरी आँखों ने पूरे कमरे का निरीक्षण किया और फिर यकायक वह चीख-से उठे, "बचो, मनोहरलाल, बचो!....इस हरे रंग से बचो। यह हरा तुम्हारी राशि के लिए अशुभ और अहितकारी है।"
मंत्री महोदय का ध्यान कमरे में बिछे हरे रंग के पर्दों की ओर गया। पूरे कमरे में हरीतिमा फैली थी।
"जानते हो, तुम्हारे लिए नीला रंग ही शुभ और हितकारी है।" महाराज ने उन्हें चेताया।
मंत्री महोदय ने निजी सचिव को बुलाकर उससे कुछ बातचीत की और फिर महाराज को साथ लेकर तुरंत अपनी कोठी चले गए।
अब मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मंत्री जी के कमरे से हरे रंग के कालीन,सोफे और पर्दे जो उनके पूर्ववर्ती मंत्री के आदेश पर कुछ दिन पूर्व ही खरीदे गए थे, हटवाकर उनकी जगह नीले रंग के नए कालीन, सोफे और पर्दे मँगवाकर लगवाने में युद्धस्तर पर जुटे थे।
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