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लघुकथाएँ - संचयन - सुभाष नीरव
धूप

चौथी मंजिल पर स्थित अपने कमरे की खिड़की से उन्होंने बाहर झाँका। कार्यालय के कर्मचारी लंच के समय, सामने चौराहे के बीचोबीच बने पार्क की हरी-हरी घास पर पसरी सर्दियों की गुनगुनी धूप का आनन्द ले रहे थे। उन्हें उन सबसे ईर्ष्या हो आई और वह भीतर ही भीतर खिन्नाए, 'कैसी बनी है यह सरकारी इमारत! इस गुनगुनी धूप के लिए तरस जाता हूँ मैं।'
उन्हें अपना पिछला दफ़्तर याद हो आया। वह राज्य से केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर आए थे। कितना अच्छा था वह आफिस-सिंगल स्टोरी! आफिस के सामने खूबसूरत छोटा-सा लान! लंच के समय चपरासी स्वयं लान की घास पर कुर्सियाँ डाल देता था-आफिसर्स के लिए। आफिस के कर्मचारी दूर बने पार्क में बैठकर धूप का मजा लेते थे। पर, यहाँ आफिस ही नहीं, सरकार द्वारा आबंटित फ़्लैट में भी धूप के लिए तरस जाते हैं वह। तीसरी मंजिल पर मिले फ़्लैट पर किसी भी कोण से धूप दस्तक नहीं देती।
एकाएक उनका मन हुआ कि वह भी सामनेवाले पार्क में जाकर धूप का मजा लें। लेकिन उन्होंने अपने इस विचार को तुरन्त झटक दिया। अपने मातहतों के बीच जाकर बैठेंगे? नीचे घास पर? इतना बड़ा अफसर और अपने मातहतों के बीच घास पर बैठे !
वह खिड़की से हटकर सोफे पर अधलेटा-सा हो गया। और तभी उन्हें लगा, धूप उन्हें अपनी ओर खींच रही है। वह बाहर हो गए हैं बिल्डिंग से। चौराहे के बीच बने पार्क की ओर बढ़ रहे हैं वह। पार्क में घुसकर बैठने योग्य कोई कोना तलाश करने लगती हैं उनकी आँखें। पूरे पार्क में टुकड़ियों में बँटे लोग। कुछ ताश खेलने में मस्त हैं, कुछ गप्पें हाँक रहे हैं, कुछ मूँगफली चबा रहे हैं। गप्पें हाँकते लोग एकाएक चुप हो जाते हैं। लेटे हुए लोग उठकर बैठ जाते हैं। उनके पार्क में बैठते ही लोग धीमे-धीमे उठकर खिसकने लगते हैं। कुछ ही देर में पूरा पार्क खाली हो जाता है और बच रहते हैं-वही अकेले।
अचानक उनकी झपकी टूटी। उन्होंने देखा-पार्क में नहीं, अपने आफिस के कमरे में हैं। उन्होंने घड़ी देखी, अभी लंच समाप्त होने में बीस मिनट शेष थे। वह उठे और कमरे से ही नहीं, बिल्डिंग से भी बाहर चले गए। पार्क की ओर उनके कदम खुद-ब-खुद बढ़ने लगे। एक क्षण खड़े-खड़े वह बैठने के लिए उपयुक्त स्थान ढूँढ़ने लगे। उन्हें देख लोगों में हल्की-सी भी हलचल नहीं हुई। बस, सब मस्त थे। लोगों ने उन्हें देखकर भी अनदेखा कर दिया था। पिछले दो सालों में यह पहला मौका था-सर्दियों की गुनगुनाती धूप में नहाने का।
लंच खत्म होने का अहसास उन्हें लोगों के उठकर चलने पर हुआ। वह भी उठे और लोगों की भीड़ का एक हिस्सा होते हुए अपने आफिस में पहुँचे। अपने कमरे में पहुँचकर उन्हें वर्षों बाद, खोई हुई किसी प्रिय वस्तु के अचानक प्राप्त होने की सुखानुभूति हो रही थी।


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