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लघुकथाएँ - देश - उर्मि कृष्ण
अमानत

सारा सामान ट्रक में लादा जा चुका था। कवि शिवा आज नए मकान में जा रहे थे, ‘‘अरी गुड़िया!’’ मां ने ऊँची आवाज में पुकारा, ‘‘चल, सारा सामान लद चुका है।’’
चार साल की गुड़िया धीरे–धीरे चलकर बाहर आ रही थी। उसके फ़्राक की झोली में कंकड़–पत्थर का बोझा लदा था।
देखते ही मम्मी झल्लाई, ‘‘यह क्या? पत्थरों का क्या करेगी? फेंक यहीं।’’ मम्मी ने गुडि़या के सारे पत्थर बिखेर दिए। दो क्षण गुडि़या पत्थर बनी बिखरे पत्थरों को देखती रही और फिर फूट–फूटकर रो पड़ी।
‘‘क्या हुआ, बेटे?’’ पापा ने गोद में उठाते हुए गुडि़या से पूछा।
गुडि़या रोए जा रही थी। मम्मी ने आगे बढ़कर कहा, ‘‘देखो, आपकी लाड़ली ये पत्थर फ़्राक में भरकर ले जा रही थी। नया फ़्राक भी बिगाड़ दिया।’’
‘‘ओहो सरिता! कुछ तो सोचती उसके पत्थर फेंकने से पहले । ये उसके बचपन की अमानत हैं, तुम्हारे ट्रक–भर सामान से ज्यादा कीमत है गुड़िया के लिए इन पत्थरों की।’’
सरिता ने गुड़िया को गले से लिपटाते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दे बेटी, मैंने तुझे दु:ख पहुँचाया।’’ और तीनों मिलकर बिखरे पत्थर उठाने लगे। गुड़िया खुशी से नाच रही थी।

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