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लघुकथाएँ - देश - विजय बजाज
संस्कार

उस दिन देखा कि पड़ोस के शर्मा जी का वर्षीय बेटा रिंकू बिस्कुट के पैकेट को कई हिस्से में बांट रहा है। रिंकू अपने मम्मी–पापा की इकलौती संतान है, तो जिज्ञासा हुई कि वो ये हिस्से किसके लिए कर रहा है। उससे पूछा, तो बहुत ही गंभीरता से बोला, ‘‘अंकल क्या आपको नहीं पता,जो कुछ भी मिले उसे मिल बांट के खाना चाहिए।’’
उसकी बात से बहुत खुशी हुई कि कितने अच्छे संस्कार दिए हैं शर्मा जी ने। यूं ही बातचीत करने के उद्देश्य से मैंने उससे पूछा लिया कि उसे यह सब कौन सिखाता है। उसने मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘अरे, इसमें सिखाने की क्या बात। पापा को जब भी कोई ठेकेदार लिफाफा दे जाता है, पापा तुरंत उसमें से रुपए निकालकर सबके हिस्से के अलग–अलग लिफाफे बना देते हैं और कहते हैं कि मिल बांट कर खाने में ही सबका भला है।’’

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