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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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कारण
चमचमाती, झंडीदार अंबेसडर कार बड़े फौजी साज–सामान बनानेवाली फैक्टरी के मुख्य द्वार से भीतर समा गई। नियत स्थान पर वे उतरे। अफसरान सब पानी जैसे होकर उनके चरणों को पखारने लगे। कुछ गण्यमान्य कहे जानेवाले खास लोग विनम्रता के स्टूच्यू सरीखे खड़े हो गए। फैक्टरी के इंजीनियर स्वचालित मशीनों की तरह चल पड़े। उनकी निगाहे बाई ओर घूमीं।
‘‘इधर विद्युत् संबंधी काम होता है सर!’’
उन्होंने दाईं ओर देखा।
‘‘इधर टूलरूम है महोदय!’’
वे आगे बढ़ गए।
‘‘सामने बारूद का काम होता है सरकार!’’
वे बारूद के ढेर में सम्मिलित हो गए।
सुबह अखबारों ने मुँह खोल दिए। जब मैंने निकाले गए मजदूर तथा तकनीशियनों से उनके निकाले जाने के कारण जानना चाहा तो सात छोटे–बड़े पारिवारिक बेटों के मुखिया ने कहा, ‘‘भइया जी, कल हमारे कारखानों में लोकतंत्र घुस आया था।’’


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