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लघुकथाएँ - देश - हीरा लाल नागर
विधान सभा का मोड़

सिटी बस टेढ़ी पुलिया पर रुकी और वे सवार हुए। वे संख्या में तीन थे। बस के अंदर प्रवेश करते हुए तीनों ने अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया। एक ने खड़े यात्रियों की जेबें टटोलनी शुरू कर दीं। दूसरे ने सीट पर बैठे लोगों को हैसियत का आकलन किया और तीसरे ने बस कंडेक्टर को अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में उलझाया।
वो देखो जेब काट रहा है-तेरह-चौदह साले की एक लड़की सीट पर उछलती हुई चिल्लाई "जेब! कौन काट रहा है? " लोगों की संशकित आंखों का उत्तर दिया लड़की के गाल पर पड़े एक थप्पड़ ने, "हरामज्ञादी। ज्यादा शोर किया तो फेंक दूंगा बस के नीचे, समझी!" उसने दांत किटकिटाए।
"बड़ा अंधेर है भाई! दिन दहाड़े जेबकतरी!" आगे की सीट पर बैठे एक यात्री की जबान को ड्राइवर ने बंद किया "शाहर के गुंडे है रोज-रोज कौन झगड़ा मोल ले इनसे! "
इतने में बस कंडेक्टर ने हांक लगाई-विधान सभा का मोड। "वे तीनों छाती चौड़ी किए उतर गए। लोगों की खुसर-फुसुर के बीच कोई ऊँची आवाज में कह रहा था-"विधान सभा की ओर जाने का यही एक रास्ता है।"

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