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लघुकथाएँ - संचयन - विष्णु नागर
चोर और कोतवाल
एक बड़ा चोर था। अपनी पेशेवर जिम्मेदारियाँ पूरी करने वह घर से निकला था। अचानक चारों तरफ से उसे पुलिस ने घेर लिया।
चेर पहले तो घबराया। फिर उसने देखा कि कोतवाल उसे सैल्यूट कर रहा है तो उसका विश्वास लौटा। चोर ने कोतवाल को डांटते हुए कहा : ‘क्यों कोतवाल साहब, हमारी हैसियत तुम्हें नहीं मालूम? हमें गिरफ्तार करोगे, इतनी हिम्मत बढ़ गई है तुम्हारी?’
केतवाल ने सैल्यूट करते हीकरते कहा : ‘सर, आपको गलतफहमी हो गई है। गृहमंत्री का आदेश है कि आपकी जान को खतरा है, सो फौरन आपकी जेड सैक्यूरिटी का इंतजाम होना चाहिए। हुजूर, हम तो आपकी सेवा में आए हैं।’
चोर ने पूछा, ‘मगर ससुर, तुम साथ रहोगे तो हम चोरी कैसे करेंगे?’
कोतवाल ने जवाब दिया, ‘सर, हम अपना काम करेंगे, आप अपना काम करते रहिए। हम आपकी सुरक्षा देंगे और आप चोरी करते रहिए।’


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