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तीन महीने से वह कमरे के एक ओर पलंग पर पड़ा है। विक्टर, जो उस कमरे में दूसरा रोगी है, अपने बैड पर लेटे-लेटे खिड़की से बाहर देख सकता है। वह उसे बाहर का आँखों देखा हाल सुनाता रहता है। आज भी वह उसे पेड़ों के बारे में, फूलों के बारे में और खासतौर पर एक लेडी टाइपिस्ट के बारे में बताता रहा है।
वह अक्सर सोचता, 'काश! उसका बैड खिड़की के पास होता और वह भी बाहर के दृशयों का आनन्द ले सकता…।' उसे लगता है कि विक्टर को इस बात का घमंड है कि उसका पलंग खिड़की के पास है। जैसे अकेला वह ही खिड़की का मालिक हो। इस ख्याल ने उसके दिल में विक्टर के लिए नफरत भर दी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, विक्टर के लिए उसकी नफरत बढ़ती ही गई। दूसरी ओर विक्टर की हालत में देखकर कर्त्तव्य की पूर्ति के लिए वह पास लगी घंटी का बटन दबा देता था। ऊघती हुई नसें आतीं, उसकी हालत देखकर डाक्टर को बुलातीं, जो उसे एक इंजेक्शन देता जिससे विक्टर पुन: आराम की नींद सो जाता। अचानक उसे ख्याल आया, अगर वह रात में घंटी का बटन न दबाए तो…?
उस रात जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा-विक्टर हाँफ रहा है और उसे साँस लेने में बहुत दिक्कत हो रही है। उसने आँखें बंद कर लीं और नींद का बहाना किए रहा।
सुबह उसने देखा-सामने वाला पलंग खाली है और बिस्तर बदला हुआ है। डाक्टर के राउंड पर आते ही उसने पूछा,"क्या मुझे वह बैड मिल सकता है?" "हाँ अवश्य…" और कुछ रूककर डाक्टर ने कहा, बहुत बुरा हुआ, रात में तुम्हें विक्टर की तकलीफ का पता ही नहीं चला। अगर तुम जाग रहे होते, तो शायद वह बच जाता।" नर्स को उसका बिस्तर खिड़की के पास बदलने का आदेश देकर डाक्टर चला गया।
उसने बड़ी निश्चिन्तता के साथ दो तकिए एक-दूसरे पर रखे और खिड़की के बाहर निगाह डाली, पर बाहर न कोई पेड़ था, न कोई घर,न खंभा,न लेटर बाक्स,न बगीचा और न ही कोई चौराहा। खिड़की के बाहर अस्पताल के पिछवाड़े की ऊबड़-खाबड़ जमीन थी, जहाँ से नालियों का गंदा पानी बह रहा था।
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