विलयम की ‘भविष्य की यात्रा’’ की पूरी तैयारी थी। उसे के कैमरा एक टेप–रिकार्डर तैयार करके दे दिया गया था। उस रात हमने उसकी सफल यात्रा की सद्भावनाओं के जाम पिए। जब वह जाने लगा, मैंने कहा, ‘‘कहीं ऐसा न हो कि ‘‘भविष्य का संसार’’ तुम्हें इतना पसन्द आ जाए कि तुम लौटना ही न चाहो। हम यहाँ तुम्हारी वापसी के लिए पेरशान रहेंगे। सो जल्दी लौटना।’’
‘‘जल्दी ही लौटूँगा !’’ उसने आश्वासन दिया। वह सही–सलामत और सही समय पर ही वहाँ पहुँचा होगा क्योंकि हमें आशा होगा क्योंकि हमें आशा थी, वह कई वर्ष पश्चात् आएगा, परन्तु वह तो इतनी जल्दी वापस आ गया कि लगा अभी–अभी तो गया ही था।
‘‘कुछ बताओ तो!’’ हमने अधीरता से उसे घेरते हुए पूछा।
‘‘पहले कुछ कॉफी–वॉफी तो पिलाओ।’’ उसने कहा। मैंने उसे काफी दी और उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
‘‘मुझे कुछ भी याद नहीं है।’’
‘‘याद नहीं है?....कुछ भी ’’
कुछ क्षण वह सोचता रहा, फिर बोला ‘नहीं, बिल्कुल कुछ भी नहीं।’’
‘‘लेकिन तुम्हारा कैमरा...? तुम्हारा टेप–रिकार्डर?’’
उसने कैमरा हमें पकड़ा दिया, उसमें फिल्म अभी भी पहले नम्बर पर ही थी, जहाँ रखकर मैंने उसे दिया था। टेप–रिकार्डर पर अभी टेप चढ़ाया भी नहीं गया था।
‘‘लेकिन क्यों? कैसे तुम्हें कुछ भी याद नहीं?’’
‘‘केवल एक बात याद है।’’
‘‘क्या?’’
‘‘मुझे सब कुछ दिखाया गया, सब जगह घुमाया गया, फिर मुझसे पूछा गया कि इन सबको तुम याद रखना चाहते हो या नहीं, इनकी फोटो ले जाना चाहते हो या नहीं, चुनाव तुम्हारा है।’’
‘‘और तुमने यही चुना कि कुछ याद नहीं रखना चाहते। लेकिन ऐसा क्यों? आश्चर्य है....’’
विलियम बोला, ‘‘याद नहीं आता कि मैंने भविष्य में ऐसा क्या देखा था जिसे मैं याद नहीं रखना चाहता था और न उसकी फोटो लेना चाहता था, यही आश्चर्य तो मुझे स्वयं हो रहा है।’’
अनुवाद:ब्रदेव