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लघुकथाएँ - संचयन - युगल
गरीबी और रेखा
अब मेरे जेहन में यह बात आ नहीं रही कि वह कौन–सा जमाना था। प्रजातंत्र वाला या राजतंत्र वाला या फिर कबीलों वाला, या सबों के बेतुके घालमेल वाला। क्योंकि जो मंत्री कहलाता था, वह दरअसल राजा ही होता था। सो उस जमाने में राजा को शौक हुआ कि वह प्रजा से मिले, उसके सुख–दुख जानने के लिए। प्रजा, जो रियाया इसलिए कहलाती थी कि जाने कब से रिरिया रही थी। वह जनता भी कहलाती थी। इसलिए कि उसे वोट देने का और पछताने का और रोने का अधिकार था और उसके वोट छीनने का कर्तव्य भी कुछ बाहुबलियों को पालन करना होता था। प्रजा में कुछ गरीब लोग थे, जिन्हें बदमग्ज़ लोग आम आदमी कहते थे।
सो राजा की प्रजा से मिलने की यात्रा शुरू हुई। साथ में नायब, अधिकारी और कर्मचारी भी थे। टी.वी. वाले भी थे। राजा हवा में उड़ता था, महल में रहता था। फूलों की सेज सोता था। उसने न गाँव देखा था और न गाँव के आदमी देखे थे। जिस गाँव में उसे लाया गया था, वहाँ उसने देखा–एक आदमी एक पेड़ के तने से टिका खड़ा है। बेतरतीब बढ़े रूखे बाल सिर, ओठ, गाल और ठुड्डी पर जंगली घास की तरह उगे थे। राजा ने मीठी बोली में जिज्ञासा की–‘‘तुम्हारा नाम?’’
‘‘रज्जा।’’
राजा को लगा, यह आदमी ‘राजा’ का विद्रूप कर रहा है। उसने गुस्से की आग को शर्बत में बुझाया–‘‘राजा सिंह? रज्जब? या रोजर?’’
‘‘रज्जा।’’ वह आदमी बोला।
ग्राम–प्रमुख ने स्पष्ट किया–‘‘यह सिर्फ़ रज्जा है हुजूर! इसकी कोई जात नहीं, कोई धरम नहीं। यह धर्म–निरपेक्ष है।’’
राजा ने ग्राम–प्रमुख का वर्जन करते हुए कहा–‘‘मुझे खुद पूछने और जानने दीजिए...हाँ,तुम्हें राज्य की ओर से कभी कोई सहायता मिली है?’’
वह आदमी सिर्फ़ मुस्कुराकर रह गया।
राजा बोला–‘‘लोगों को गरीबी रेखा के ऊपर लाने के लिए हमारी कई योजनाएँ हैं, उसके तहत कभी कुछ मिला?’’
‘‘झोपड़ी खड़ी करने के लिए एक हजार और रिक्शा खरीदने के लिए दो हजार।’’
‘‘रिक्शे से कितनी कमाई हो जाती है?’’
वह आदमी मुस्कुराने लगा।
राजा बोला–‘‘बहुत खुश हो। अच्छी आमदनी हो जाती है?’’
वह आदमी कुछ स्मरण करता हुआ बोला–‘‘अब क्या कहें हुजूर! मैं तो सब गड़बड़ा गया। आगे गाँव में और लोग खड़े हैं। शायद उन्हें याद हो कि क्या कहना है। मैं तो भीख माँगता हूँ। किसी तरह रोटी का इन्तजाम हो जाता है। मैं गरीबी को जानता हूँ। रेखा को भी जानता हूँ। वह मेरे साथ भीख माँगती थी। रेखा तो भगवान को प्यारी होकर ऊपर चली गई और मैं गरीबी के साथ नीचे रह गया हूँ।’’
पता नहीं प्रजा से मिलने उस दिन कहाँ तक गया।


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