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लघुकथाएँ - देश - युगल
नामांतरण

‘‘अम्मा!’’
‘‘क्या है रे?’’
‘‘काम चइए अम्मा!’’
‘‘इतना छोटा लड़का...क्या करेगा तू?’’
‘‘झाड़ू–पोंछा, बाज़ार से सौदा लाऊँगा। आप के पाँव दबाऊँगा।’’
‘‘कानून वाला बोलता है, बच्चे से काम लेना जुर्म है।’’
‘‘मेरा दादा अंधा है। माँ बीमार है।’’
‘‘और बाप?’’
‘‘कमाने गया था। बहुत दिन हुए, नहीं लौटा।’’
‘‘कोई और जगह देख बिट्टू! मेरे यहाँ काम नहीं है।’’
‘‘अम्मा, सब बड़ा लोग यही बोलता। घर वाला भूखा तो नहीं मरेगा?’’
लड़के की आँखें डबडबा आई। वे डबडबाई आँखें सविता शर्मा को विचलित करें, इसके पहले ही वह अंदर चली गई, कोई पाँच–सात या दस मिनट बाद वह बाहर निकलीं, तो लड़का बरामदे की सीढ़ी पर घुटने में सिर डाले सिसक रहा था। दो क्षण वह खड़ी रहीं। पूछ बैठीं–‘‘तू गया नहीं रे?’’
लड़के ने सिर ऊपर किया। गाल आँसुओं से भींगे थे। शर्ट ओछी और मैली थी। लड़के के मुँह से बोल फूटा, ‘‘कहाँ जाऊँ अम्मा?’’ वह उठकर खड़ा हो गया। सविता शर्मा को देखता रहा। बोला, ‘‘अम्मा, आपके जानते कोई है, जो मेरे को काम दे?’’
सविता को थोड़ा सहानुभूति हुई, ‘‘क्या नाम है तेरा?’’
‘‘नूरुल्ला।’’
‘‘तू कटुआ है?...मुसलमंटा?’’
नूरुल्ला अनबूझ दृष्टि से सविता देवी को ताकता रहा। आँखें बिल्कुल निर्दोष। सविता देवी के जिस मन में आया था कि लड़का निहायत ज़रूरतमंद है, रख लेते हैं, वही मन अटक गया। धर्म–जात...नाहक। उन्होंने वैसे ही पूछ लिया, ‘‘तेरा खतना हो गया है?’’
‘‘खतना क्या?’’
‘‘बचपन में मुसलमानों की छुछड़ी काटी जाती है।’’ कहते–कहते सविता देवी हँस पड़ीं।
लड़का बरामदे के ऊपर चढ़ गया और निश्छल भाव से अपना निकर नीचे खींच लिया। जाँघ तक नंगा। सविता देवी, ‘‘अरे–अरे! क्या कर रहा है! बदमाश!’’ कहती हुई हँसने लगीं, ‘‘शर्म नहीं आती?...ऊपर कर निकर’’
‘‘अम्मा, आपके आगे शर्म कैसी?’’
सविता देवी का शंकालु मन तर्क–वितर्क करता रहा। लड़के का कोई ठीक अता–पता नहीं। बहुत गरीब और बेसहारा है। रखें या नहीं। लड़के ने अपने दादा का, बाप का, मुहल्ले का पता बतलाया। सविता देवी ने बेपरवाही से सोचा, पता लगा लिया जाएगा। बोलीं, ‘‘अंदर आ जा। कोई पूछे तो नाम बतलाना, नीरूलाल । क्या बतलाएगा?’’
लड़के के ओठों पर अजब–सी मुस्कान खिली, ‘‘नीरूलाल।’’

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