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लघुकथाएँ - देश -राकेश कुमार
लांग शॉट
वह हँसा जबकि इसमें हँसने जैसा कुछ न था। मैंने केवल इतना कहा था, अजीब मुश्किल है टिकट ही नहीं मिल रहा और उसने मुझे भसरपूर देखा, मुस्कराया, फिर बोला, फिल्म चल निकली है ! इस सूचना में जिज्ञासा जैसा कुछ था यह उसके हाव–भाव से समझना कठिन था पर शब्द घंटियों की तरह बज रहे थे। वह अपनी रौ में बोलता रहा।
मेरा क्या जाता था! मुफ्त की फिल्म और सीट की सुविधाजनक स्थिति। पास कुछ शब्द अवश्य बिखर रहे थे–आपको यकीन न हो एसिस्टेंट मुझसे कह रहा था, ऐसा स्टंट दृश्य पहली बार किसी फिल्म में आया है सच कहिए तो मुझको पहले काफी डर लगा रहा था–कर पाऊँगा या नहीं। आप जानते हैं यह कितना खतरनाक होता है। कभी–कभी। लेकिन सब कुछ इतनी तेजी में हुआ कि मैं खुद महसूस नहीं कर सका यानी रोमांच जैसा कुछ। आप समझ रहे है! शॉट ओ. के. हुआ तो हीरों ने मेरी पीठ ठोंकी। आप अंदाज नहीं लगा सकते मुझे कितनी खुशी हुई तब आप अभी देखेंगे कपड़े से लेकर हेयर स्टाइल तक सब हीरो के जैसा है। आप मुझे शायद पहचान नहीं पाए। कैमरा लांग शॉट में है न, पर.....और उसके शब्द फुसाफुसाकर रह गए। तालियों का एक रेला वह निकला था।
अँधेरे में उसके हाव–भाव महसूसना काफी कठिन था। पर वह जिस तरह चुप पड़ गया था उससे मुझे भय था कि कहीं उसकी भूमिका गुजर न गई हो। अब एक फिल्म में तो इतने सारे लांग शॉट होते हैं। मुझे क्या मालूम था यह सब एक झटके में होगा। मेरा अभीष्ट उस स्टंटमैन को ठेस पहुँचाने का तो कभी न था पर सामने गीतों के बोल तैरने लगे। मैं नायिका के चेहरे के क्लोजअप बटोरने लगा।
 
 
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