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लघुकथाएँ - देश -ओमा शर्मा
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‘‘लड़की हुई।’’ उसने अपने अनन्य मित्र को सूचित किया। उसे तपाक से ‘बधाई हो’ के सुनने का इन्तजार था।
‘‘तो होना क्या था’’ उसने अविश्वास में पूछा।
‘‘होना न होना क्या होता है यार! जो हुआ है वही होना था।’’ उसने विश्वास से कहा।
‘‘सोनोग्राफी नहीं करवाई थी क्या?’’ प्रश्न से सहानुभूति का सायास पुट साफ था।
‘‘करवाई थी, पर सैक्स के लिए नहीं।’’
‘‘करवा लेनी थी।’’ साफ मतलब।
‘‘नहीं यार, सब ठीक ही हुआ।’’
‘‘अब तुमसे पार्टी नहीं माँग सकता।’’ दोस्त ने एक टुच्ची हँसी छितराई।
‘‘क्यों–क्यों?’’
‘‘लड़की होने पर क्या पार्टी! लड़का होता तो...’’
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