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लघुकथाएँ - देश -अवधेश कुमार
मेरे बच्चे

अब मैं अपने बच्चों के साथ पुराने खेल नहीं खेल सकता। मैं उनके साथ रामलीला खेलता हूँ, तो वे राम का सिर रावण के धड़ पर ,रावण का सिर राम के धड़ पर लगा देते हैं। मैं उन्हें मना नहीं कर सकता।
वे कितने सही हैं!
घोड़ा–घोड़ा खेलता हूँ, तो वे मुझे ही अपनी पीठ पर बैठाकर दौड़ाना चाहते हैं। अब आसमान की ओर उँगली उठाकर उस चमकदार चीज को चंदा मामा कहते हुए मुझे शर्म आती है।
बच्चे जानते हैं कि वित्तमंत्री जो पूरक बजट पेश करने वाले हैं, उसका क्या मतलब है? ‘एन एमेंडमेंट ए डे, कीप्स द अपोजि़शन अवे।’
मेरे बच्चे, मेरे पिता से पूछते हैं, ‘क्यों बुढ़ऊ, उन्नीस सौ सैंतालीस से पहले क्या जेब काटने तक के जुर्म में जेल नहीं जा सके? च–च–च!’’
और वे जानते हैं कि कौन–सी सही जगह पर उन्हें थूकना चाहिए।
मेरे पूज्य पिताजी, क्या अब भी तुम ठीक हो सकते हो?
देखो, मेरे बच्चे मेरा सिर तुम्हारे धड़ और तुम्हारा सिर मेरे धड़ पर लगाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
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