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लघुकथाएँ - देश - शोभा रस्तोगी
माता का जागरण

आज रात घर में माता का जागरण है ।  जरूर आना ।  बाबूजी ने संदेसा भिजवाया है । ' नामीगिरामी व्यवसायी आनंद जी का नौकर बुलावा दे गया था ।  रात उनके घर उनसे मिलने पहुँचा ।  कमरे के बाहर आती आवाज ने रोक दिया ।
 ' तुझे पता लग गया था कि तेरे पेट में लड़की है ।तूने  न मुझे  बताया न इसे गिरवाया’- ' आनंद जी का पारा सातवें आसमान पर था ।
'माता का जागरण करा रहे हो, ऐसे तो न बोलो जी । ' पत्नी ने हाथ जोड़कर विनती की ।
तड़ाक्  की आवाज गूँजी -  'चुप रह ।  मुँह मत चला । सुबह मैया की आरती होते ही डॉ. से टाइम ले लियो ।  शाम तक किस्सा ख़त्म हो जाना चाहिए’-' पत्नी को आदेश दिया ।
सुनकर मन का कोर - कोर पीड़ित हो गया ।  जागरण में बैठे बिना ही वापस हो लिया ।

 
 
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