गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - सरोज परमार
मानुस -गंध
हवा में हल्की सी सरसराहट और हलचल महसूस हुई। नहीं, यह सिर्फ़ हवा का झोंका नहीं था। इसमें मानुस–गंध घुली थी। जो लोग प्रतिदिन, प्रतिपल इसके सम्पर्क में रहते हैं,वे इसे भूल सकते हैं। बल्कि भूल जाते हैं। पर वे इसे पहचानने में कैसे भूल कर सकती हैं जिन्हें बहुत–बहुत दिन हो जाते हैं इसकी कमी के अहसास को जीते और तब कुछ पल हासिल होते हैं ,इसे महसूस करने के। हँसते,बोलते,सुनते, ‘गंध भरे’ कुछ पल।
तथाकथित रिश्तों में से महीने में एकाध बार कोई आता है। बाज़ार से ज़रूरत के सामान की व्यवस्था करने। (बाकी काम वे अपने कराहते–काँपते शरीर को करने को बाध्य करती हैं) और उस ‘व्यवस्था दिवस’ के आने में अभी पूरे बीस दिन का इन्तज़ार बाकी है। सुबह ही तो उन्होंने गिना है। फिर यह कौन.....
आँखें कमज़ोर सही, पर उस झुटपुट अंधेरे में गौर से देखा, तो नज़र आ ही गया। सचमुच में एक जीता जागता इंसान! बरबस ही उनके चेहरे पर कर्णचुम्बी मुस्कुराहट फैल गई।
भय, आतंक, निरीहता देखने के आदी लुटेरे की विमूढ़ दृष्टि देख रही थी-कभी अपने हाथ के हथियार को और कभी उस अजनबी चेहरे की स्वागतपूर्ण हार्दिक मुस्कुराहट को।
-0-
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above