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लघुकथाएँ - देश - अखिल रायजादा
पहला संगीत

रोज की तरह एक गर्म, बेवजह उमस भरा दिन। पसीने में नहाते, किसी तरह साँस लेते यात्रियों को समेटे लोकल ट्रेन पूरी रफ्तार से चली जा रही थी। यात्रियों की इस भीड़ में मैं भी अपना नया खरीदा गिटार टाँगे खडा था। इस हालत में स्वयं और नए गिटार को सम्हालने में बड़ी परेशानी हो रही थी।
सौभाग्यवश दो स्टेशनों के बाद बैठने की जगह मिली। लोकल के शोर में एक सुर सुनाई पड़ा, ‘‘जो दे उसका भला ,जो न दे उसका भी भला.....’’ एक लंगड़ा भिखारी भीख माँगते निकला फिर दो बच्चे भीख माँगते निकले, फिर  एक औरत खीरा बेचती आई। एक चायवाला और उसके पीछे गुटका, तम्बाखू, पाउच वाले चिल्लाते निकले। किनारे की सीट पर साथ बैठे परेशान सज्जन बड़े ध्यान से इन्हें देख रहे थे, बोल पड़े–‘‘इतनी भीड़ में भी इन फेरी वालों, भिखारियों को जगह मिल ही जाती है। अभी मेरे ऊपर गर्म चाय गिरते गिरते बची है। आजकल तो छोटे–छोटे बच्चे भी भीख माँग रहे है।
तभी एक लड़की छोटे से लड़के को गोद में उठाए भीख माँगते गुजरी। उनके कटे–फटे कपड़े उनका परिचय करा रहे थे। दूसरे सहयात्री ने कहा–‘‘ये देखिए भावी भिखारी। पता नहीं इनके माँ–बाप पैदा क्यों करते हैं?’’
विगत छह माह से मैं भी इस रूट पर चल रहा हूँ परन्तु मैंने इन बच्चों को पहले भीख मांगते कभी नहीं देखा था। पहले सहयात्री ने कहा–‘‘अरे परसो जिस भिखारिन की ट्रेन से कटकर मौत हुई थी ये उसी के बच्चे है!’’
अब छोटे बच्चों के भीख माँगने के कारण ने अजीब सी खामोशी की शक्ल ले ली। सभी फेरीवालों, भिखारियों की तरह उस लड़की ने भी बच्चे को गोद में उठाए कई चक्कर लगाए। मैंने ध्यान दिया उसकी नजरें मुझ पर रुकती थी। ट्रेन चली जा रही थी, लोकल का अंतिम पड़ाव और मेरा गंतव्य आने में अब कुछ ही समय बचा था।
बिखरे बाल और उदास चेहरा ओढ़े, फटी हुई किसी स्कूल की ड्रेस में बच्चे गोद में उठाए वो लड़की अब मेरे ठीक सामने थी। मैंने पाया कि इस बार वो ना केवल मेरी ओर देख रही थी बल्कि उसने अपना हाथ भी आगे बढ़ा रखा था। मुझे अपनी ओर देखते वो बोली–‘‘आज मेरे भाई का जन्मदिन है।’’ अमूमन मेरी जेब में चाकलेट पड़ी रहती है  ।मैंने गोद में रखा गिटार किनारे रख कर जेब टटोली दो चाकलेट निकाल कर उसे दी। छोटा बच्चा किलकारी मारता उन पर झपटा, परन्तु बच्ची की उँगली फिर भी मेरी तरफ थी। अब तक इस अजीब सी स्थिति ने सभी यात्रियों का ध्यानाकर्षण कर लिया था। कुछ उन्हें गालियाँ देकर वहाँ से जाने को कहने लगे।
इसके पहले कि मैं कुछ समझूँ उसने कहा–‘‘आज मेरे भाई का जन्मदिन है...’’ मैं प्रश्नवाचक चिह्न- सा उसे ताक रहा था। वह लड़की फिर बोली–‘‘आज मेरे भाई का जन्मदिन है। हैप्पी बर्थ डे बजा दो ना....’’ लोकल अपनी रोज की रफ्तार में थी। मैंने केस से अपना नया गिटार बाहर निकाला और हैप्पी बर्थ डे टू यू बजाने लगा। छोटा बच्चा गोद से उतर कर नाचने लगा। सहयात्री आश्चर्य में थे। लड़की की आँखों में अद्भुत चमक थी। ‘‘हैप्पी बर्थ डे टू यू’’ बजाते पहली बार मेरी आँखें नम थी।
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