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लघुकथाएँ - देश - डॉ शुभा श्रीवास्तव
टूटे बटन

घड़ी पर निगाह पड़ते ही राधा के हाथ और तेजी से चलने लगी। सोचने लगी कि आज फिर देर हो गई। अपने ऊपर झुँझलाते हुए कुर्ते पर बटन बंद कर रही थी कि अचानक ऊपर का बटन हल्के से टूटकर एक सिरे से बँधा हुआ झूलने लगा। घड़ी पर फिर निगाह गई। सोचा न बदलने का समय है न टाँकने का। राधा ने दुपट्टे को सावधानी से लिया ताकि ऊपर की बटन बंद न होने का अहसास छुप जाए। रास्ते में अपने आप को समझाया कि नीचे का दो बटन तो बंद ही है। सिर्फ़ ऊपर का एक टूटा है, इतना बुरा नहीं लगेगा। ऑफिस में जाकर वह काम में व्यस्त हो गई और सब भूल गई। लंच के समय उसने महसूस किया कि चाहे या अनचाहे रूप में हर एक की निगाह उस स्थल पर अवश्य जा रही है जो टूटे बटन के कारण दिख रहा है। मिस्टर चड्ढा का बार–बार आना, चपरासी का बिना माँगे चाय–पानी दे जाना, काम न होते हुए भी मिस्टर सिंह का फाइलों के प्वांइट समझना, मिसेज जोशी का औरतों के कपड़े छोटे होने की चर्चा अकारण होते हुए भी टूटे बटन से जुड़ गई। राधा के मस्तिष्क में प्रश्न कौंध उठा कि महत्वपूर्ण क्या है? पाँच मीटर का सलवार कुर्ता, टूटा बटन या फिर......निगाहें। 
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