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लघुकथाएँ - देश - हरि मृदुल
तिल
उसे ऑॅफिस में बैठे हुए पता नहीं कैसे अचानक याद आया कि बीवी के नीचे के होंठ के पास एक तिल था, जो उसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता था। क्या वह तिल अब भी वहीं है?
इधर लंबे समय से ध्यान ही नहीं गया।
घर जाकर पहले बीवी का चेहरा निहारा। बड़े गौर से। किसी जासूस की तरह।
बीवी इस अप्रत्याशित व्यवहार पर चकित थी।
पूछा– क्या देख रहे हैं ऐसे?
‘तिल कहाँ गया, जो शादी के पहले मैंने नीचे के होंठ के पास देखा था?’
‘है ना तिल। एक नहीं दो–दो। एक दाहिनी आँख के नीचे और दूसरा नाक के ऊपर।’
‘मैं उस तिल की बात कर रहा हूँ, जो नीचे के होंठ के पास था....।’
‘ये उसी तिल के तो बच्चे हैं। इन्हें मुझे सौंप कर वह तिल मिट गया है।’
उसने देखा कि वाकई बीवी की दाहिनी आँख के नीचे और नाक के ऊपर दो छोटे–छोटे तिल उभर आए हैं।
बीवी के चेहरे पर झुका हुआ वह विस्मित था।
इतने में उसके दोनों बच्चे दौड़े आए।
‘मम्मी के चेहरे को इतने गौर से क्यों देख रहे हैं पापा?’
‘देख रहा हूँ कि मेरी बीवी गुम तो नहीं हो गई...।’
यह सुनकर बच्चे हो हो कर हंस दिए। बीवी भी मुस्कराई।
लेकिन उसके चेहरे पर अब भी विस्मय मौजद था।
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