माँ आठ दस ईंटें लेकर फेरा लगाती, छोटा बच्चा भी माँ के पीछे–पीछे उतने ही फेरे लगाता, जितनी माँ। पर खाली हाथ, ईंट भट्ठे में मजदूरी की यही दिनचर्या थी।
ईंट भट्ठे का मालिक बैठा–बैठा यह सब निहारता रहता अचानक उसके दिमाग में एक आइडिया सूझा।
‘‘तेरा बेटा जो बेकार तेरे पीछे–पीछे चक्कर लगाता है, उसे भी एक ईंट पकड़ा दिया कर’’ माँ को प्यार से समझाया–
माँ ने मालिक की बात मानकर एक ईंट बच्चे को पकड़ा दी– बच्चा ने जैसे–तैसे, गिरते–पड़ते फेरा पार कर लिया।
‘वेरी गुड’–मालिक खुश होकर चहका–कल से इसे दो ईंटें पकड़ा दिया कर।
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