आज मैं बड़ा उत्साहित था। पूरे कॉलेज में जबर्दस्त गहमा–गहमी थीं मणि दा और उनके साथी, जो एक दूसरे को कॉमरेड कह कर संबोधित किया करते थे, आज कोई जुलूस निकालने वाले थे जिसकी तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही थी।
मणि दा कॉलेज में मुझसे सीनियर स्टूडेंट थे और मुझे बहुत प्रिय थे। इसका कारण सिर्फ़ यही नहीं था कि कॉलेज में तकरीबन रोज होने वाली जूनियर स्टूडेंटस की रैगिंग से वो मुझे बचा लिया करते थे बल्कि उनका व्यक्तित्व मुझे बहुत प्रभावित करता था। शांत, सौम्य और सहज। आज सुबह से ही वो और उनके साथी हॉस्टल के उनके कमरे में सिर से सिर जोड़ कर किसी गरमा गरम बहस में मशगूल थे जो मेरी समझ के बाहर की बात थी। सिर्फ़ एक शब्द बार–बार मेरे कानों से टकरा रहा था–‘बाजारीकरण’। इसका अर्थ भी मुझे समझ नहीं आ पाया था। इस शब्द को लेकर कई नारे और कविताएँ हाथों रची जा रही थीं और जिन्हें मैं, मणि दा के कमरे में मौजूद तीन–चार दूसरे जूनियर स्टूडेंटस की ही तरह, पूरे मनोयोग से कागज की बड़ी–बड़ी शीट पर लाल रोशनाई और ब्रश की सहायता से सुंदर तरीके से लिख रहा था। मैं यह सोच कर रोमांचित था कि मेरे बनाए ये पोस्टर जूलूस में शामिल किए जाएँगे। अपने प्रिय मणि दा के इस अभियान में यही मेरा बहुत बड़ा और एकमात्र योगदान था।
तभी मेरी नजर एक पुराने से पोस्टर पर गई जो मणि दा के बिस्तर के ठीक ऊपर लगा हुआ था। लंबे बाल, थोड़ा उठा हुआ चेहरा, फौजी केप। पोस्टर में मौजूद इस आदमी ने सहज ही मेरा ध्यान आकर्षित किया। पोस्टर पर एक इबारत भी लिखी हुई थी–‘‘इफ यू ट्रेबल विद इन्डिग्नेशन एट ऐव्री इनजस्टिस, दैन यू आर ए कॉमरेड ऑॅफ माइन।’’ जिसका मन ही मन मैंने हिंदी अनुवाद किया, अपने टूटे–फूटे अंग्रेजी ज्ञान के बल पर–‘‘यदि किसी भी अन्याय को देख तुम क्रोध से काँपने लगो तो तुम मेरे साथ हो।’’
‘‘–ये पोस्टर किसका है मणि दा?’’ मैंने जिज्ञासावश पूछा। जवाब में मणि दा और उनके साथ हंस पड़े। मणि दा बोले–‘‘कैसे नौजवान हो यार–चे ग्वेवारा को नहीं जानते।’’ सारे कॉमरेड हँस पड़े। लेकिन वो उपहास नहीं बल्कि एक सहज निर्मल हास्य था। फिर सबने मेरी चे ग्वेवारा से जान–पहचान कराई। इस परिचय से मैं इतना प्रभावित हुआ कि मैंने प्रस्ताव रखा कि क्यों न ये पोस्टर भी जुलूस में शामिल किया जाए। मेरा ये प्रस्ताव तालियों की गड़गड़ाहट के साथ पारित कर दिया गया।
नारों, कविताओं और गीतों से गूँजता जुलूस कॉलेज से रचाना हुआ। मेरे हाथों में चे का पोस्टर था। मैं उत्तेजना से काँप रहा था। तभी अचानक सामने से शोर उठा। सायरन बजाती कई सरकारी गाडि़याँ हमारी ओर झपटी। फिर देखते ही देखते एक भगदड़ सी मची। अचानक चारों तरफ से अनगिनत लाठी–डंडें बरसने लगे। बुरी तरह अफरा–तफरी मच गई। एक डंडा मेरी टाँगों पर पड़ा। मैं चीख कर नीचे गिर पड़ा। चे का पोस्टर मेरे हाथों से छूट कर सड़क पर आ गया जिस पर से असंख्य बूट गुजर गए। मेरे सहपाठी ने मुझे उठा कर कहा–चल भाग। वरना काम में आजाएँगे।’’ मैं घबरा कर उसके साथ हो लिया। हम पूरी ताकत से भागने लगे। सब कुछ पीछे छूटने लगा।
थोड़ी देर बाद हम रुके तो अपने आपको एक बाजार में पाया। हम रुक कर हाँफने लगे। मेरा सहपाठी एक दैत्याकार -सी शापिंग मॉल के नजदीक पेवमेंट पर बैठ गया था। मैं भी उसके पास बैठ गया। हमारे इर्द–गिर्द दुकानों की लंबी कतारें थी। जिन पर ग्राहकों की भीड़ मक्खियों की तरह भिनभिना रही थी।
तभी मुझे ये दिखाई दिया। वो एक नौजवान लड़के की टी–शर्ट पर छपा हुआ था। एक लड़की उसे लड़के से हँसते हुए पूछ रही थी–‘‘वाउ–नाइस टी! लेकिन ये है कौन? इज दिस ऐ हॉलीवुड स्टार ऑर समथिंग?’’ लड़का हंसा–‘आय डोंट नो बेब–मे बी सम रॉक स्टार–बट इट्स कूल ना!!’’
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