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लघुकथाएँ - देश - डॉ. गौतम सचदेव
उपद्रवी
किंग्स क्रॉस स्टेशन से बाहर निकलते ही रविन्दर सिंह बायें मुड़कर उस लगभग ख़ाली और छोटी-सी गली की ओर चल पड़ा, जहाँ उसने एक खंभे के सहारे अपनी साइकिल खड़ी की थी और हर रोज़ की तरह ज़ंजीर और ताले के द्वारा उसे खंभे से बाँध दिया था । चूँकि लंदन में साइकिल चोर ताला लगा होने पर भी प्रायः उसका अगला पहिया ही चुराकर ले जाते हैं, इसलिए रविन्दर ने अगला पहिया उतारकर पिछले के आगे रखा था और फिर दोनों पहियों में ताले वाली ज़ंजीर डाली थी । साइकिल को उसी स्थान पर छोड़कर वह रोज़ गाड़ी से केम्ब्रिज जाया करता था और पढ़ाई करने के बाद शाम को गाड़ी से ही लौटता था । वह एक फ़िल्मी गीत गुनगुना रहा था और मस्ती भरे क़दमों से ताल देता हुआ चल रहा था ।
साइकिल के पास पहुँचकर वह ज्योंही ताला खोलने के लिए झुका, उसके कानों में आवाज़ आई – एइ हालोवीन । जब तक रविन्दर मुड़कर देखता कि आवाज़ कसने वाला कौन है, उसके कानों से एक और फ़िक़रा टकराया – व्हाइ हैव यू मेड अ डोम ऑन द हैड (सिर पर गुम्बद क्यों बनाया है) ? रविन्दर समझ गया कि नस्लपरस्त आवारागर्द लड़के हैं, जो एशियाइयों पर अपमानजनक फ़िक़रे उछालते रहते हैं । उनकी ओर बिना देखे उसने चुपचाप ताला खोला और फिर साइकिल के अगले पहिये को यथास्थान फ़िट करने में जुट गया ।
अचानक किसी ने उसकी पीठ पर ठोकर मारी और वह औंधे मुँह गिरते-गिरते बचा । रविन्दर उठकर खड़ा हो गया । तीन गोरे लड़के उसके सामने खड़े थे । स्किनहेड्स के जीते-जागते नमूने, मुंडित मस्तक गुंडे, जिनकी आँखों से लगता था कि शरारत करना उनकी मनपसंद हॉबी है । एक के मुँह में सिगरेट थी, दो की उँगलियों में । “हैलो पाकी पिग” कहते हुए एक गुंडे ने हाथ मारकर रविन्दर की पगड़ी उछाल दी । इससे पहले कि रविन्दर अपनी पगड़ी उठाता, दूसरे गुंडे ने सिगरेट आगे बढ़ाकर उसे जलाना चाहा, जबकि तीसरे गुंडे ने उसे अड़ंगी देकर गिरा दिया । रविन्दर अब भी उनसे उलझना नहीं चाहता था । वह चुपचाप उठकर अपनी पगड़ी की ओर जाने लगा ।
गुंडों के लिए पगड़ी तब तक फ़ुटबॉल बन चुकी थी और फ़ुटपाथ तक पहुँच चुकी थी।
तड़ाक ।
मझोले क़द के लेकिन गठे हुए शरीर वाले रविन्दर का इस्पाती हाथ पगड़ी से खेलने वाले गुंडे के गाल पर पड़ा । यह देखकर बाक़ी दोनों गुंडे रविन्दर को पीटने के लिए हुँकारते हुए आगे बढ़े । रविन्दर ताले वाली ज़ंजीर को कुशल खिलाड़ी की तरह घुमाने लगा । एक गुंडे की कनपटी पर ताले ने बहुत गहरा घाव किया । उसने दूसरी बार ज़ंजीर को घुमाकर दूसरे गुंडे के जबड़े के पेंच ढीले कर दिये । अपने साथियों की यह हालत देखकर ज्योंही तीसरा गुंडा रविन्दर को मारने के लिए आगे बढ़ा, ज़ंजीर का भरपूर वार उसके माथे पर भी पड़ा । तीनों गुंडे घायल बाघों की तरह रविन्दर पर एक साथ झपटे, लेकिन वह ज़ंजीर को इस तरह घुमा रहा था, जैसे सुदर्शन चक्र हो । तब तक सामने के फ़्लैट वाले ने पुलिस को फ़ोन कर दिया था । पलक झपकते ही पुलिस वहाँ पहुँच गई, जिसने चारों को गिरफ़्तार कर लिया ।
चारों को मजिस्ट्रेट के आगे पेश करते हुए पुलिस ने बताया कि रविन्दर सार्वजनिक स्थान पर उपद्रव मचा रहा था और उसने एक ख़तरनाक हथियार से तीन राहगीरों को गम्भीर चोटें पहुँचाई हैं । पुलिस ने यह भी कहा कि हमें रविन्दर के मानसिक रूप से स्वस्थ होने में सन्देह है ।
 
 
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