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लघुकथाएँ - देश - सतीश दुबे
बर्थ–डे गिफ्ट
आटो रिक्शा जैसे ही रूका उन्होंने गेट के बाहर पाँच वर्षीय पोती को खड़े पाया। उसके चेहरे से यह झलक रहा था कि वह उन्हीं का इन्तज़ार कर रही है।
‘‘दादाजी!’’
‘‘बेटे! आज जरूर कुछ विशेष बात है।ऑटो से उतरकर उन्होंने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा।
‘‘दादाजी, आज आपको बहुत अच्छी बात बताऊँगी।’’ किसी विशिष्ट मेहमान के आगमन में व्यस्त किए जाने वाले, आत्मीय खुशी के इजहार में रूप में वह उनके आगे–आगे चलते हुए नृत्य करने की मुद्रा में हाथ–पैर मटका रही थी।
वे सौफे पर जाकर बैठ गए। पत्नी द्वारा दिया गया एक गिलास पानी गटक जाने के बाद भी थकान के कारण उनका हलक सूखा था। उन्होंने पानी और देने को संकेत किया। अब वे तर थे। पोती इस पूरे क्रिया –कलाप से बेख़बर उनके दोनों पैरों के बीच चेहरा डाले मुस्कुरा रही थी। ‘‘बता दूँ....’’ उसने दादी की ओर निगाह डाली। वे समझ गए, दादी–पोती की कोई साजिश है। ‘‘बता दो....क्या बताना चाहती हो।’’’
‘‘दादाजी, आज आपका हैप्पी बर्थ–डे है ना!’’ उन्होंने हिसाब लगाया, आज उनकी उम्र के सत्तावन साल पूरे हो गए हैं।
‘‘अच्छा! हाँ! मैं तो भूल ही गया था।’’ वे न जाने कौन से विचारों में खो गए।
‘‘ दादाजी, मैं आपके लिए गिफ्ट लाई हूँू।.....लाती हूँू।’’ उसकी जल्दबाजी से लग रहा था, गिफ्ट के रूप में अपनी खुशी को प्रकट करने के लिए अपने आपको न जाने कब से रोक रही थी। पीछे की ओर हाथों में कुछ छिपाए वह लौटी। ‘‘आप आँखें मींचिए।’’ उन्होंने आँखें मूँद लीं। ‘‘खोल लीजिए।’’
‘‘इधर देखिए’’ उसने सेन्ट्रल टेबल पर रखी टॉफी की ओर इशारा किया तथा ताली बजाकर गाने लगी–‘‘हैप्पी बर्थ–डे टू यू....दादाजी.....।’’ उन्होंने महसूस किया, उनके सामने बेशकीमती उपहार रखा हुआ है। घर का सन्नाटा टूट चुका है तथा पूरा कमरा ‘‘हैप्पी बर्थ–डे टू यू’’ से गूँज रहा है। याद आया, उसे कल दो टॉफियाँ दिलाई गई थीं। उसे याद था, कल दादाजी का बर्थ–डे है, इसलिए उसने एक टॉफी जतन से अपने स्टडी टेबल के ड्राअर में छुपाकर रख दी थी।
‘‘दादाजी, आपको गिफ्ट कैसा लगा....’’
‘‘बहुत अच्छी। थैंक्यू बेटे....।’’
‘‘तो लीजिए ना!’’ उसने रैपर खोलकर, हँसते हुए टॉफी उनके मुँह में डाल दी। उन्होंने दोनों हाथों से उसे अपने सीने से भींच लिया। जीवन में पहली बार इतने आत्मविभोर वातावरण में उनका जन्मदिन मनाया गया था। नम आँखों से उन्होंने पोती को चूम लिया।
 
 
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