गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - उर्मि कृष्ण
बाजरे की रोटी
लंच शुरू हो गया था। रणवीर ठाकुर,जितेन्द्र मिश्रा और राजीव गुप्ता साथ–साथ खाना खा रहे थे। ये सभी लोग मेरे असिस्टेंट हैं।
यार पालक पनीर तो बहुत स्वाद बना है। बड़ा टेस्टी है। राजीव गुप्ता खाने में बहुत माहिर है। पनीर असल में, पालक के साथ थोड़ा और होना चाहिए था तब मजा आता। जितेन्द्र मिश्रा को हर चीज थोड़ी और चाहिए होती है।
पालक के साथ मक्की की रोटी बहुत अच्छी लगती है। जब गाँव में था.....लेकिन अब क्या इस शहर में आकर सब कुछ.....। रणवीर ठाकुर रह जरूर दिल्ली में रहा है ; लेकिन उसका मन हमेशा उसके गाँव में, अतीत में ही डूबा रहता है।
मैं सभी की बातें सुन रहा था कि अम्मा पिताजी याद आ गए थे। कैसे अम्मा लोगों के खेतों से माँगकर लाए गए पालक, मैथी, बथुआ और सरसों को मिलाकर साग बनाया करती थी और शाम को पिताजी पूरे दिन मजदूरी करके बाजरा खरीदकर अपनी कमीज के दामन में लाते थे और अम्मा उसे छाँट–फटककर पीसती थी तब बाजरे की रोटी के साथ साग खाया जाता था। सोचते–सोचते ही मुँह से निकल गया था, अच्छा आप सभी एक बात बताओ, आपमें से किसी ने बाजरे की रोटी के साथ मिक्स साग खाया है।
बाजरे की रोटी। जितेन्द्र मिश्रा बोला था।
हाँ– हाँ बाजरे की रोटी।
सर हम जानते हैं बाजरा......सर, बाजरा हमारे यहाँ जानवरों के लिए बोया जाता था..... सर बाजरा तो जानवर खाते थे। एक ही सांस में तो बोल गया था जितेन्द्र मिश्रा। इतना सुनते ही मेरी आँखों से फल्ल से आँसू निकले और मेरी सब्जी में मिक्स हो गए थे। उस दिन कोई नहीं जान पाया था कि मन से निकली पीड़ा आँसुओं से होती हुई बिखर गई थी।
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above