ऊपरी निर्देश मिलने पर पुलिस सुबह–सवेरे ही गाँव में आ धमकी थी। सुबह जो जाँच–पड़ताल शुरू हुई, तो शाम तक बैठकें जुटी रहीं। दोपहरों को नम्बरदारों की हवेली में मुर्गे पके थे और शहर से अंग्रेजी व्हिस्की मँगवाई गई थी। चौपाल नंबरदारों की हवेली में बिछी थी।
नंबरदारों के बड़े पुत्तर द्वारा हवेली की मुजारिन से खेतों में बलात्कार किए जाने पर मुजारों के नेता ने मुख्यमंत्री से शिकायत कर दी थी। शिकायत पत्र पुन: थाने में लौट आया था,जिसके जवाब में नंबरदार ने मीतो पर नंबरदानी की चार हजार की सोने की चेन चुराने का आरोप लगा दिया था।
शाम ढलते ही थानेदार ने व्हिस्की का गिलास हलक के नीचे उतारते हुए अंतिम कार्रवाई शुरू कर दी–हूँ....।.....तो चेन आपके पास नहीं है....मीतो कहाँ है? बुलाओ उसे जरा......मैं स्वयं पूछ लेता हूँ।
डरी–सहमी मीतो के आते ही थानेदार की भेड़िया नजरें उसे नीचे से ऊपर तक लील गईं। अपने ही संबंधियों के सामने नग्न होती जाती मीतो की कमजोरी को थानेदार के रुतबे ने बड़ी तेजी से भाँप लिया–बंता सिंह....इसे अंदर लाओ तो जरा।
थानेदार बिना किसी से आँख मिलाये चौपाल के साथ वाले कमरे में चला गया जहाँ पहले ही बंता सिंह सिपाही मीतो को बाँह से पकड़कर भीतर ले गया था। आधे घंटे बाद थानेदार मीतो को साथ लेकर बाहर आया तो उसके संबंधियों की जान में जान आई।
मीतो ने चोरी मान ली थी, और जिस्म के टूटते जाते अंगों के दर्द को सँभालते हुए उसने भरी चौपाल में समझौते पर हस्ताक्षर भी कर दिए। थानेदार ने कागज मीतो की बिरादरी वालों की ओर बढ़ाते हुए उसके माता–पिता को समझाया–रकम तो बहुत ज्यादा है ; परंतु मैंने नम्बरदारों को आधे पर मना लिया है।....वह भी नगद नहीं देना पड़ेगा आपको....। मीतो उनके घर पर थोड़ा काम कर देगी....और शाम को घर जाते समय खेतों में खाना भी दे आया करेगी। बस, उसके इस ओवर टाइम से नंबरदारों का घर भी पूरा हो जाएगा, और.....आप भी बच जाएँगे। थानेदार ने अपनी मूँछों को ताव देते हुए, एक नजर से जहाँ नंबरदार की ओर देखा था, वहीं उसकी दूसरी नजर, अपनी नजरें झुकाए बैठी, मीतो पर जा टिकी थी। |