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लघुकथाएँ - देश - देवेन्द्र कुमार मिश्रा
न्याय
सारे सबूतों, गवाहों को देखते हुए ये अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि रामलाल हत्या का दोषी है अत: रामलाल को दफा 302 के तहत फाँसी की सजा सुनाई जाती है।
इतना कहकर जज ने कलम की निब तोड़ दी। तभी जोर से हवा चली। रामलाल के शरीर पर लिपटी हुई चादर दूर जा गिरी और रामलाल के कुर्ते की बाँहें हवा से झूलने लगीं।
रामलाल के दोनों हाथ कटे थे। अदालत में बैठा हर शख्स सन्नाटे में आ गया। जज साहब को तनाव में देखकर सरकारी वकील ने कहा–‘रामलाल को जब हत्या के बाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था उस वक्त उसके हाथ नहीं कटे थे। जमानत मिलने के बाद शायद कोई हादसा हुआ हो। पुलिस इतनी भी गई गुजरी तो नहीं कि दोनों हाथ कटे हुए व्यक्ति को हत्या के आरोप में पकड़े। फिर सारे सबूत,गवाह भी रामलाल के खिलाफ हैं। ‘‘रामलाल बे कातर स्वर में कहा कि उसके हाथ पहले से ही कटे हैं।’’
‘‘क्या सबूत है तुम्हारे पास?’’ सरकारी वकील ने पूछा और रामलाल से उत्तर देते न बना।
जज फैसला दे चुके थे। सो पहला फैसला सुनाकर दूसरा फैसला देना उन्हें ठीक प्रतीत नहीं हुआ। और हाथ हत्या के पहले से नहीं थे या बाद में। ये भी तो स्पष्ट नहीं था। रामलाल गरीब व्यक्ति था। उसकी पैरबी करने वाला कोई वकील नहीं था। शहर से भी उसका कोई अपना नहीं था। जो उसके लिए वकील लगाता। गरीब फिर अपंग और हस्तहीन अपंग क्यों करेगा अपील। अपीली की प्रक्रिया भी किसे मालूम? कौन बताएगा? सो रामलाल को फाँसी की प्रतीक्षा थी। फाँसी से कुछ समय पूर्व उससे पूछा गया ‘‘कोई अंतिम इच्छा’’ रामलाल ने कहा–‘‘ फाँसी के तख्ते पर उसे एक मिनट बोलने का मौका दिया जाए।’’ रामलाल को नियत समय पर फाँसी के तख्ते पर लाया गया। जेल के अधिकारी, कर्मचारी सभी थे। जज साहब भी। जल्लाद की अपनी पूरी तैयारी थी।
‘‘कहो, क्या कहना है?’’
‘‘कानून कहता है कि मृत्यु पूर्व कही गई बात को सत्य माना जाता है यदि झूठ बोलने का कोई मकसद न हो मेरा भी कोई मकसद नहीं है। खासकर इस समय जबकि अगले मिनट में, मैं जिंदा नहीं रहूँगा और ये बात जो मैं कहने जा रहा हूँ यहीं दफन हो जाएगी।’’
‘‘मैं निर्दोष हूँ। मैंने किसी की हत्या नहीं की।’’
‘‘लेकिन ये बात तो तुमने।।।।जज ने पूछा।।।।और अब क्या फायदा?’’
‘‘सबके सामने भरी अदालत में या मीडिया के समक्ष कहता तो इसे जान बचाने का उपाय समझा जाता और सबसे बड़ी बात ये कि आपके दिए फाँसी के फैसले के बाद यदि मैं सिद्ध कर देता कि मेरे हाथ बहुत पहले से ही कटे थे तो लोगों का न्याय से न्यायपालिका से विश्वास टूट जाता।’’
सभी सन्नाटे में आ गए। सबके चेहरे ग्लानि से भर आए ;लेकिन क्या किया जा सकता है? जल्लाद ने काले कपड़े से मुँह ढका। इशारा किया गया और जल्लादों ने रामलाल को फाँसी पर चढ़ा दिया।
 
 
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