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लघुकथाएँ - देश - शोभा रस्तोगी |
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फ़रियाद
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राशन दफ्तर में फरियाद हुई -'राशन कार्ड बनवाना है । '
'उधर जाइए'-- दिशा निर्देशित करती हुई मुड़ी ऊँगली ने दबंग व्यक्ति की ओर इशारा किया।
'राशन ..............' पुन: प्रार्थना की ।
' यह फार्म भरकर १५०० रुपए जमा कर दो '-- हेकड़ी से भरपूर आवाज अकड़ी ।
' १५०० रुपए ....? वो किसलिए ...? - यह सरकारी सुविधा तो मुफ़्त में प्रदत्त है’- फरियादी की आवाज में जागरूकता झलकी ।
' तो सरकार से बनवा लो ....'--- दबंग ऑफिसर का रुतबा बढ़कर बोला ।
' मै एफ़. आई. आर. करवाऊँगा! 'ज्वार-भाटे की लहरें घिर गईं फरियादी के माथे पर ।
' एफ़. आई. आर. ! उसके लिए थानेदार को भेंट चढ़ाना मत भूलना !' दबंग व्यक्ति और दबंगई से बोला ।
'मै पार्षद-विधायक तक जाऊँगा '- माथे की लकीरों ने और विस्तार लिया ।
'तो ......... जितना ऊपर जाओ, उतनी मोटी रकम लेते जाना । अधिक ऊपर मत चले जाना । वहाँ जो जाता है, लौटता नहीं है-' दबंग भेड़िया अपनी रोज़मर्रा की अनुभवी आवाज में गुर्राया ।
'मतलब..? देश में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन जाग्रत हो रहे है । अन्ना-- .....,'
पूरी बात मुँह से निकल भी न हो पाई थी कि दबंग सर्प ने विषैला डंक मारा-' क्या होगा इन सबसे ? अन्ना हो या कोई और . सरकार तो अपना बचाव कर ही लेती है ।'
' यह लोकतंत्र है?’ वह रुआँसा हो गया ।
'जी हुज़ूर!!’ -दबंग ने पान की पीक पच्च से दीवार पर मारी और दाँत पीसे-‘ ‘हाँ, यही लोकतंत्र है!!'
फ़रियादी बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा। |
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