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लघुकथाएँ - देश - प्रवीण कुमार श्रीवास्तव |
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योजना
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गाँव में दो साल पहले एक क्रांति आयी । गाँव के कुछ पुराने नलकूप जलस्तर कम होने के कारण थोड़ा कम पानी दे रहे थे। एक दिन एक पढ़े लिखे किसान को एक योजना का पता चला। सबमर्सिबल पम्प लगवाने के लिए सरकार से आधी छूट मिल रही थी। बहुत पानी निकलता था इस पम्प से। एक से दूसरे,दूसरे से तीसरे किसान तक योजना पहुँची। कुछ ने सरकारी छूट पर कुछ ने अपने खर्चे पर पम्प गड़वा डाले। खेत लहलहाने लगे तालाब पोखर सब पम्पों से ही भर दिए गए। दो साल के अन्दर ही बीस पच्चीस सबमर्सिबल पम्प खेतों में सीना ताने खड़े हो गए । किसान खुश थे बहुत कमाई हुई। खेतों की, ज़मीन की प्यास बुझ गई।
मगर ये क्या?
आज दो साल बाद ही गाँव के सारे हैंडपंप ज़वाब दे गए । खेतों की प्यास तो बुझी मगर गाँव के लोग पानी के लिए तरसने लगे ।
सरकारी इंजीनियरों और अधिकारियों की टीम छानबीन पर आई। छानबीन के बाद अपना निष्कर्ष दिया-"आप लोगों ने बेतहासा भूगर्भ जल का दोहन किया है इसी का ये परिणाम है और बहुत जल्दी ही ये सबमर्सिबल पम्प भी पानी देना बंद कर देंगे।"
भीड़ में खुसर-फुसर शुरू हो गयी। कोई सरकार को, कोई किस्मत को कोस रहा था । तभी भीड़ से एक मतलब का सवाल किसी बुद्धिमान ने किया-"साहब हमारी प्यास का क्या।।।।।।।।?"
"कल से शहर से एक टैंकर प्रतिदिन आपके गाँव आयेगा" जीप में बैठते हुए एक अधिकारी ने कहा।
लोग मूक बने देर तक जीप के पीछे उडती धूल को देखते रहे। |
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