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लघुकथाएँ - देश - डॉ. शंकर पुणतांबेकर
तीर्थ और पीक
पुजारी ने भक्ति–भाव से भगवान की पूजा की और हाथ में तीर्थ का पात्र ले मन्दिर के दरवाजे पर आया।
उसने सामने सूर्य भगवान को प्रणाम किया और पात्र का कुछ तीर्थ उँगलियों से उसकी ओर उड़ाया।
मन्दिर के ठीक सामने पुलिस थाना था। दोनों के बीच सड़क थी। संयोग ऐसा कि जिस समय पुजारी ने तीर्थ उड़ाया थानेदार सड़क पर था।
‘‘क्या है यह?’’ वह पुजारी पर दहाड़ा।
‘‘कुछ नहीं हुजूर तीर्थ हैं।’’
‘‘अब ऐ तीर्थ के बच्चे, थाना क्या तेरे बाप की जायदाद है जो उसकी दीवारें तू तरह खराब करता है।’’
‘‘पर मैंने तो तीर्थ सूर्य भगवान की ओर उड़ाया है हुजूर।’’
‘‘चुप रह। आइन्दा ख्याल रखना। नहीं तो कोठरी में बन्द कर दूँगा।’’
इतना कह थानेदार कुछ आगे बढ़ा और पिच्च से उसने मन्दिर की दीवार पर पान की पीक थूक दी।
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