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लघुकथाएँ - देश - निरुपमा कपूर
कसूर
उसकी छोटी–छोटी आखें मुंदी जा रही थीं। मुट्ठियाँ भिचीं जा रही थीं उसे बहुत डर लग रहा था। आज उसे अपनी माँ पर बहुत प्यार आ रहा था माँ सबसे लड़ कर उसे बचाने की कोशिश में लगी थी। वह चिल्लाना चाहता था कि माँ मैं तेरे साथ हूँ तू डर नहीं मुझे बचा ले तभी किसी ने माँ को जोर से धक्का मारा ओर माँ नीचे गिर गई। नीचे गिरते ही मुझे लगा कि मेरा दम निकल जायेगा लेकिन माँ गिरते ही उठ कर बैठ गई और मुझे सहलाने लगी तब मेरी जान में जान आई। घर के सभी लोगों के तेज–तेज चिल्लाने की आवाजें आ रही हैं पर वह समझ नहीं पा रहा था कि वे क्या बात कर रहे हैं लेकिन इतना तो समझ ही रहा था कि सब मेरी माँ से नाराज थे ऐसा क्या किया था माँ ने इतनी तो अच्छी थी, मुझसे इतना प्यार करती थी तो फिर सब क्यों चिल्ला रहे थे उस पर हाथ क्यों उठा रहे थे। मुझे कुछ भी समझ नहीं आया तभी फिर से माँ के रोने की आवाज सुनाई दी और किसी के तेज चिल्लाने की आवाज आई।
रोज–रोज का झगड़ा आज खत्म ही कर देते हैं जा छोटे डाक्टर को बुला ला। डाक्टर की बात सुन कर माँ को क्या हो गया क्यों माँ दहाड़े मार रकर रो रही है कभी किसी के तो, कभी किसी के पैर पकड़ कर माफी माँग रही हे, बार–बार मत बुलाओं डाक्टर को क्यों कह रही है तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और माँ चीख मार कर बेहोश हो गई बेहोशी की हालत में ही बड़–बड़ा रही थी मुझ पर ये जुल्म मत करो, माफ कर दो मुझे मेरे बच्चे को उसका कोई कसूर नहीं हैं तभी सब लोगों ने डाक्टर से पता नहीं क्या कहा डाक्टर ने वेहोशी की हालत में ही माँ को इंजेक्शन लगा दिया। पर जैसे ही माँ को इंजेक्शन लगा मेरे हाथों पैरों में क्या होने लगा, वे एकदम सुन्न पड़ते जा रहे थे, हाथों की पतली–पतली शिराओं का खून काला पड़ता जा रहा था, पूरे शरीर में दर्द की सिहरन दौड़ रही थी, मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था मैं माँ को पुकारना चाहता था मेरी आवाज कंठ में हलक कर रहगई और तभी मेरे शरीर में काला खून बहना शुरू हो गया माँ के कान और नाक से खून बहने लगा था और मेरी भी दिमाग की नस से काला खून बाहर बहने लगा था। मैंने माँ की ओर देखा तो लगा मौत की गोद में आराम से सो रही थी और उसके अंदर में भी सो रहा था और एक क्षण के लिए उसे ऐसा लगा कि जैसे माँ कह रही हो कि मेरे बेटे मैं तुझे जन्म नहीं दे पाई लेकिन मेरे कसूर की सजा तुझे क्यों मिली एक अनव्याही माँ का कसूर उसके बच्चे को क्यों भुगतना पड़ा?
 
 
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