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लघुकथाएँ - देश - भगीरथ
फूली
पौ फट रही थी।
फूली माँचे से उठी और दालान में आकर गाय–भैंस का गोबर इकट्ठा करने लगी। गोबर इकट्ठा करने के बाद बाटा चूल्हे पर चढ़ाना था। दूध दोहना था, दिन उगते तो मक्खियाँ तंग करने लगती है।
फूली का आदमी भानियाँ पूरा भगत है। सुबह पैली उठकर वीर बाबजी का धूप करता, आरती उतारता, अक्सर आरती उतारते–उतारते उसे वीर बावजी भाव आने लगता, धूजमा और बड़बड़ाता।
उस दिन भी भानियाँ के शरीर में वीर बावजी आए तो फूली दालान से ही चिल्लाई–सुबह पेली काम के टैम कांई माँडयों है। हे वीरजी मैं थारा हाथ जोड़े, क्यूँ म्हारे पीछे लागों हों।
भानियाँ का भाव और तेजी पकड़ने लगा। शरीर बुरी तरह काँपने लगा।
गरदन तो ऐसे घूम रही थी जैसे कील पर रखी हो।
वह देखते देखते दुखी हो गई थी यह सब। भाव उतरने के बाद उसका शरीर दुखता और वह खेत में खाट पर पड़ा रहता या फूली से कहता–ज़रा दबा दे, आज तो वीरजी ऐसे पड़ में आए कि हाड़–हाड़ दुख रहा है।
घर में खंटे तो फूली और खेत में जुते तो फूली। कई बार फूली आँसुओं–सनी आँखें लेकर वीरजी के मंदिर में गई। दूब हाथ जोड़े–पाँव पड़ी, मगर भानियाँ में कोई फरक नहीं पड़ा।
फूली ने गाय की टाँगों में बँधी रस्सी खोली, दूध की चरी वहीं पटक, औले में गई और भानियाँ से बोली–थारा हाथ जोडूँ वीरजी थे अठाऊ पधारों।
प्रार्थना बेअसर होते देख फूली गुस्से में आई। नारियल फोड़ा, चूल्हे से सुलगता कंडा लाई उस पर धूप और नारियल डाला, धुआं उठते–उठते आग भमक उठी।
–जाएगा कि नहीं जायगा, कहती हुई आग को भानियाँ के मुंह तक ले गई।
आँच लगते ही उसकी मूँछों के बाल जल गए। मूँछ जलते देख भानियाँ होश में आया और एक दम पीछे हटा, मगर फूली तो आग और आगे कर रही थी।
भानियाँ बोला–क्या कर रही है तू मैं कोई भूत–प्रेत हूँ जो तू ऐसे भगा रही है। मैं तो देव हूँ, देव।
फूली बोली–दीखता नहीं है। सुबह पैली काम तेरा वीरजी करेगा, बता। आज तो वीरजी को भगा के ही मानूँगी। मेरा घर बरबाद हो रहा है और मैं देखती रहूँ। भगत–भाव को भी कोई टेम व्है है। कहते हुए आग को उसकी और बढ़ाया, अगर भानियाँ पीछे नहीं हटता तो आग उसके मुँह में घुस जाती।
भानियाँ एकदम पलटा, दालान में आया। और चरी उठा कर दूध दोहने लगा।
 
 
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