गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - बलराम
बहू का सवाल
रम्मू काका काफी देर से घर लौटै तो काकी ने ज़रा तेज आवाज से पूछा, ‘‘कहाँ चले गे रहव; तुमका घर कैरि तनकव चिन्ता–फिकिर नाई रहति हय।’ तो कोट की जेब से हाथ निकालते हुए रम्मू काका ने विलंब का कारण बताया, ‘ज़रा ज्योतिषीजी के घर लग चलेू गे रहन, बहू के बारे मा पूछयं का रहय।’
रम्मू काका का जवाब सुनकर काकी का चेहरा खिल उठा, सूरज निकल आने पर खिल गए सूरजमुखी के फूल की तरह। तब आशा भरे स्वर में काकी ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की, ‘का बताओं हईनि?’
चारपाई पर बैठते हुए रम्मू काका ने कंपुआइन भाभी को भी अपने पास बुला लिया और बड़े धीरज से समझाते हुए उन्हें बताया, ‘शादी के बाद आठ साल लग तुम्हरी कोखि पर’ शनीचर देवता क्यार असरु रहो, ज्योतिषीजी बतावत रहयं, हवन–पूजन कराया कयअब उई शनीचर देउता का शांत करि द्याहयं, तुम्हयं तब आठ संतानन क्यार जोगु हय। अगले मंगल का हवन–पूजन होई। हम ज्योतिषी ते कहि आये हन।’ रम्मू काका एक ही सांस में सारी बात कह गए।
कंपुआइन भाभी और भइया चार दिन की छुट्टी पर कानपुर से गाँव आए थे और सोमवार को उन्हें कानपुर पहुंच जाना था। रम्मू काका की बात काटते हुए कंपुआइन भाभी ने कहा, ‘हमने बड़े–बड़े डॉक्टरों से चेकअप करवाया है और मैं भी माँ नहीं बन सकूँगी।’
कंपुआइन भाभी का जवाब सुनकर रम्मू काका सकते में आ गए और अपेक्षाकृत तेज आवाज में बोले, ‘तब फिरि हमें साल बबुआ केरि दूसरि शादी करिदेबे। अबहिन ओखेरि उमर हय का हय।’
रम्मू काका की यह बात सुनते ही कंपुआइन भाभी को क्रोध आ गया तो उन्होंने सच्ची बात उगल दी, ‘कमी मेरी कोख में नहीं, आपके बबुआ के शरीर में है। मैं माँ तो बन सकती हूँ, पर वे बाप नहीं बन सकते। और अब, यह जानने के बाद आप क्या मुझे दूसरी शादी करने की अनुमति दे सकते हैं?
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above