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लघुकथाएँ - देश - राजेन्द्र नागर ‘निरंतर’
आईना
बैंक में अचानक एक बहुत सुन्दर चेहरा प्रकट हुआ। सारा हाल रोशनी से भर उठा। हर कर्मचारी उसका काम करने के लिए उतावला हो गया। कंघियाँ बाहर आ गईं। झुकी हुई कमर सीधी हो गई।
‘व्हॉट केन आई डू फॉर यू?’’
‘‘कहिए, क्या काम है?’
‘‘पैसा निकालना है?’’
उसे एक साथ कई आवाजों ने घेर लिया। लड़की ने इधर–उधर खोजी निगाहें फेंकी और एकाएक उसकी आँखें चमक उठी। उसने कहा, ‘‘मेरे पिताजी अपनी पेंशन लेने करीब दो घंटे पहले यहाँ आए थे, उनका पेमेन्ट जल्दी करवा दें तो कृपा होगी।’’
सभी कर्मचारी एक–दूसरे का मुँह देख रहे थे और उन वृद्ध से आँखें मिलाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी।
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