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लघुकथाएँ - देश - नीरज नैथानी
तंग कोठरी
जिन्दगी भर किराए के मकान में किसी तरह गुज़र बसर की । किराए के मकान क्या तंगहाल कोठरियाँ कह लीजिए, चाहे दड़बा कह लीजिए ।कमरों की नुक्ताचीनी करते समय बीत गया । अब मेरे उन मित्र के अपने मकान का निर्माण कार्य चल रहा था।एक दिन संयोग से मित्र के साथ उसके निर्माणाधीन मकान को देखने का अवसर प्राप्त हुआ। उसने एक बड़े आकार के कक्ष में प्रवेश करते हुए गर्व से बताया कि यह ड्राइंगरूम है,उसके साथ लगा हुआ लगभग उसी आकार का दूसरा बड़ा कमरा बेडरूम । उसके बाहर गैलरी व चौड़ी लॉबी के साथ डाइनिंगरूम । सामने पूजा -कक्ष बगल में किचन तथा दूसरी ओर छत पर जाने के लिए सीढि़याँ । सीढि़यों की उसके बगल में गेस्टरूम ।
मैंने देखा-गेस्टरूम के साथ सटी एक छोटी सी अन्धेरी कोठरी व उससे जुड़ी एक और तंग कोठरी। मैंने मित्र से पूछा -“ये............... शायद स्टोर रूम...........?”
दोस्त ने बताया-“नहीं ,यह तो एक कमरा व किचन सैट हे।यह अपने उपयोग के लिए नहीं, वरन किराए पर देने के लिए बनाया है।”
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