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लघुकथाएँ - देश - कमल चोपड़ा
एक
जत्थे और उसके बीच का फासला कम होता जा रहा था। उसका दिल धड़क रहा था। हाथ–पाँव कांप रहे थे। हथियारों को हवा में लहराते हुए धर्म के जयकारे लगाता हुआ दंगाई जत्थ उसकी ओर बढ़ रहा था। किसी भी क्षण वह मुंह बाये उसकी ओर बढ़ रही मौत के जबड़े में होगा। बचने के लिये वह भागना चाहता था पर....? पांव एकदम जड़ हो गये थे। उसकी रूह काँप रही थी – अल्लाह अल्ला अल्ला रहम....मेरे मौला मुझे बचा....
जत्थे के आगे–आगे चल रहे व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी तो जयकारे लगाना छोड़ उसने प्रश्न भरी नजरों से उसकी ओर देखा। क्षण भर को उसकी साँस सूख गई। अगले ही क्षण जाने कैसे उसने अपनी मुट्ठी हवा में उछाल कर जयकारा लगाया – जय श्री राम....। भीड़ ने जवाब दिया – जय श्री राम। उसने फिर जयकारा लगाया – जयश्रीराम। भीड़ ने फिर जयकारे का जवाब जयकारे में दिया। कुछ ही देर बाद वह जत्थे के आगे–आगे जयकारे लगाता हुआ चल रहा था। नारे लगाते–लगाते उसका गला सूखने लगा था। तभी भीड़ में से किसी ने नारे की लय बदली – जय श्री राम....जय श्री राम!.... वह धीरे–धीरे भीड़ के पीछे की ओर होने लगा।
जत्था आगे बढ़ गया। उसकी जान में जान आई.... यह हुआ कैसे? बच कैसे गया मैं? भगवान ने मुझे बचा लिया। मैंने अल्लाह को याद किया था। मेरे मुँह से अचानक जयकारा निकला। राम के नाम ने मुझे बचा लिया। दोनों ने मिलकर? या दोनों हैं ही एक?
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