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लघुकथाएँ - देश - अशोक गुप्ता
अधूरा प्रतिनिधि
एक बार आँकड़ों का एक संमेलन हुआ। आकार के आधार पर भूख से मरने वालो के प्रतिनिधि आँकडे को सभापतित्व सौंपा गया।
पहले सभी आँकड़ों का परिचय होना था। सभी आँकड़े अपने अपने बिल्ले लगाये अपने निर्धारित स्थान पर बैठे थे। परिचय का दौर चल रहा था तभी अध्यक्ष महोदय का ध्यान गया कि बिलकुल पीछे सबसे अलग, बिना किसी बिल्ले के एक अस्त ।व्यस्त आँकड़ा बैठा है और चुपचाप सुन रहा है।
अध्यक्ष ने उस आँकडे को जिज्ञासा पूर्वक देखा और उसका परिचय जानना चाहा। ।
" श्रीमान्, किसी भाति पेट भर लेने का अपराध बोध लिये भीतर से मर जाने वालों का में प्रतिनिधि आँकडा हुं, लेकिन अपने वास्तविक आकार के लिए पर्याप्त शून्य उपलब्ध न हो सकने के कारण यहां आमंत्रण नही जुटा पाया हूँ ।”
सभापति ने चुपके से अपने आकार पर एक दृष्टि डाली और सभा पुनः आरम्भ हो गई।
वह अधूरा प्रतिनिधि कब उठ कर चला गया किसी को पता नहीं- - -
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