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लघुकथाएँ - देश - ज्ञानदेव मुकेश
बड़ा आदमी
उस छोटे आदमी ने निश्चय किया कि वह एक बड़ा आदमी बनकर रहेगा। उसे ज्ञान था कि पद और पैसे ही आदमी को बड़ा बनाते हैं। अत: उसने पद और पैसा पाने का अथक प्रयास शुरू किया। मगर जल्दी ही उसे इस बात का भी ज्ञान हो गया कि पद और पैसा पाना कोई आसान काम नहीं है। वह दूसरे उपाय खोजने में लग गया। तभी उसे पता चला कि अपने जैसे छोटे लोगों की शोहबत छोड़ दी जाए और बड़े लोगों के नजदीकी बढ़ाई जाए और उनके साथ उठना–बैठना किया जाए तो उसकी गिनती बड़े लोगों में हो सकती है। लिहाजा उसने अपने जैसे छोटे लोगों से घृणा करना प्रारम्भ कर दिया। उसके रिश्तेदार और मित्र उससे दूर जाने लगे। वह अकेला होने लगा। उसने इस बात की परवाह नहीं की। मगर इस बीच बड़े लागों से नजदीकी बनाने में उसे सफलता भी नहीं मिली। हारकर उसने बड़े लोगों की कुछ तस्वीरें घर में टांग लीं। वह अच्छे–अच्छे कपड़े पहन कर बड़े लोगों के ईर्द–गिर्द चक्कर लगाता रहता। बड़े लोग उसे पास नहीं फटकने देते। मगर इसके बावजूद वह घीरे–धीरे महसूस करने लगा कि वह एक बड़ा आदमी बनने लगा है।
अचानक एक दिन अपने फ्लैट में उसकी मृत्यु हो गई- उस समय घर पर कोई नहीं था। कोई होता भी कैसे ? सभी उससे दूर जा चुके थे। हाँ, उसके घर की दीवारों पर बड़े लोगों की तस्वीरे जरूर टँगी थी जो निर्विकार होकर उसकी लाश को देख रही थीं। लाश सड़ती रही। दुर्गंध फैली तो पड़ोसियों ने नगरपालिका को सूचना दी। नगरपालिका के चतुर्थवर्गीय कर्मचारी आए और उस बड़े आदमी की लाश को ठेले पर लादकर श्मशान ले गए। लाश दिन भर लावारिस पड़ी रही। शाम को एक डोम की नजर पड़ी। उसने कहीं से एक फूल लाकर बड़े आदमी के पाँव पर रखा और उसकी लाश का विद्युत शव–दाह गृह में ढकेल दिया।
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