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लघुकथाएँ - देश - बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु'
हालात

वह 'ड्राई डिपार्टमेंट' माने जाने वाले विभाग में छोटा-सा कर्मचारी था। जाहिर है, मामूली वेतन के अलावा ऊपरी आमदनी की कोई गुंजाइश ही न थी। लेकिन वेतन आयोग की अनुशंसा लागू हो जाने से उसका वेतन काफी बढ़ गया था। इसीलिए पत्नी के कहने पर, ड्यूटी से आते वक्त वह बच्चों के लिए ताजे फल खरीदना नहीं भूलता था। दूधवाले से भी रोज आधा लीटर ज्यादा दूध लेने लगा था।
मुश्किल से चार-पांच दिन ही हुए थे कि शाम को फलवाले ने पूछ लिया, 'बाबू जी, घर में कौन बीमार है?' सुबह दूध मापते दूधवाले का सवाल था, 'घर में सब की तबीयत ठीक-ठाक है ना, बाबू जी?
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