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लघुकथाएँ - देश - डॉ हरदीप कौर सन्धु
घर और कमरे

शहर की पॉश कालोनी के एक आलीशान मकान में कान्ता बाई पहले दिन काम करने आई थी तब उसे पता नहीं लगा था कि इतने बड़े मकान में कितने लोग रहते होंगे ? उसे कितना काम करना होगा ? नीचे लिविंग रूम , ड्राइंग रूम, स्टडी रूम , रसोई और ऊपर पाँच कमरे , तीन बाथरूम ।इतने बड़े घर में काम करते हुए उसे यह भी याद न रहता कि कौन -सा कमरा हो गया और कौन -सा छूट गया .
इतना सुंदर घर उसने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था . कीमती फर्नीचर , रेशमी पर्दे , मखमली विछौने , दीवार पर टँगी बड़ी बड़ी तस्वीरें , घर के एक तरफ झरने से गिरते पानी का मधुर संगीत और फूल -पौधे हर देखने वाले को मन्त्र -मुग्ध कर देते. काम करते समय कान्ता सोचे जा रही थी कि काश उसका घर भी ऐसा ही होता . प्रभु ज्यादा नहीं तो इस घर में से अगर रत्ती भर भी मुझे दे दे ! अपने आपसे बातें करती वह बोली , " कितना मुश्किल है मुझे .......एक कमरे का भी कोई घर होता है ......वहीं नहाना -धोना ......और वहीं खाना पकाना ......ऊपर से पाँच बच्चों का इतना बड़ा परिवार ...कोई कैसे सँभाले ?"
पर एक बात उसे खटक रही थी -वह जब भी सुबह-सुबह इस घर में आती तो उसे घर की मालकिन कभी भी घर न मिलती . घर का मालिक कभी-कभी दिखाई दे जाता . उनकी 15-16 वर्ष की बेटी शीतल कॉलिज जाने के लिए तैयार हो रही होती . कान्ता आते ही सबसे पहले उसके लिए नाश्ता बनाती और फिर दूसरे कामों में लग जाती .
‘’मालकिन कभी नहीं मिली बिटिया?’’-एक दिन उसने पूछा तो शीतल ने बेमन से बताया कि उसकी मम्मी कुछ समय के लिए शहर से बाहर गई है और जल्दी ही लौट आएगी ।
आज जब कान्ता आई तो शीतल चुप सी एक कोने में बैठी थी .
" ए रानी बिटिया .....का हुआ ? कालेज नहीं जाना आज ?" उसके इतना कहने की देरी थी कि शीतल की आँखे भर आईं . उसने बताया कि कल डाक्टरी रिपोर्ट आई है , उसको कैंसर हो गया है .
कान्ता सुनकर परेशान हो उठी , " हाय राम !........तेरी उम्र से भी बड़ी बीमारी .....ये का हो गया बिटिया .....कैसे हुआ .....कब हुआ .....तूने कभी कुछ बोला भी नहीं इसके बारे में ....भीतर ही भीतर अकेले ही झेले जा रही हो ......मैं बोल देती हूँ आज तुझे ......हाँ ......अपनी मम्मी को फोन लगा बस तू ......अभी .......बुला उसे अपने पास .....नन्ही- सी जान .कैसे झेलेगी रे तू ?"
आज शीतल ने सुबकते हुए उसे एक और कड़वा सच बताया कि उसकी मम्मी घर छोड़ के चली गई है . घर में होते क्लेश से तंग आकर उसने ये कदम तब उठाया जब उसके पिता ने उसे मरवाने की धमकी दी . अब वह कभी भी इस घर में वापिस नहीं आएगी .
यह सुनकर कान्ता सोचने लगी......तभी तो मेरा मन न माने ........इतना कुछ होते भी यहाँ सूनापन क्यों लगता है ? उसे कभी यहाँ घर दिखाई क्यों नहीं देता था . उसका पति चाहे रिक्शा चलाकर कम ही कमाता है ......लेकिन वह कितना अच्छा है ....उसका कितना ख्याल रखता है ...और कभी-कभी उसे रिक्शे पर यहाँ छोड़ भी जाता है .
हिचकी लेते शीतल बोली , " मेरी सहेलियाँ कितनी भाग्यशाली हैं जिनके पास उनकी माँ है . मेरे पिता को रुपया कमाने से फुर्सत नहीं है , मैं उनको कैसे कुछ बताऊँ . पापा कहते हैं कि हमारे पास बहुत पैसा है , मुझे चिंता करने की आवश्यकता नहीं , इलाज हो जाएगा ."
कान्ता अपनी चुनरी के पल्लू से शीतल के आँसू भी पोंछे जा रही थी और सोच रही थी कि वह अपने एक कमरे के घर में कितनी सुखी है ! उसे यहाँ हमेशा कमरे ही दिखाई दिए , घर कभी दिखाई नहीं दिया .
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