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लघुकथाएँ - देश - प्रदीप शशांक
अन्याय

श्यामलाल बहुत बैचेन था.दोपहर के 12- 30 बज चुके थे.वह सोच रहा था कि साहब को कितना समय और लगेगा.उसे भूख भी सताने लगी थी।
कल शाम को कार्यालय से साहब को उनके बंगले पर छोडते समय साहब ने कहा था–‘‘श्यामलाल कल अवकाश का दिन है.बहुत दिनों से मैडम जज साहब के यहां जाने को कह रही है.अत: तुम सुबह 8 बजे आ जाना.बस कुछ देर बैठने के बाद 10 बजे तक वापस आ जाएँगे क्योकि 10 बजे के बाद जज साहब के भी अन्य व्यस्त कार्यक्रम रहते है।
वह सुबह ठीक 8 बजे साहब के बंगले पर पहुँच गया था .उसने गैराज से जीप निकालकर अपनी साइकिल खडी कर दी.
मैडम एवं साहब के बाहर आते ही उसने जीप में दोनों को बैठाया एवं जीप शहर की पाश कालोनी में बने जज साहब के सुंदर बंगले के बाहर खडी कर दी।
इंतजार की घड़ियाँ ज्यादा लंबी होती है.वैसे तो वह ड्राइवर था और उसे इंतजार करने की आदत थी।
दरअसल वह सुबह घर से केवल चाय पीकर ही निकला था.उसे यह उम्मीद थी कि वह दस -साढे दस बजे तक वापस आ जाएगा.इसी कारण घर से चलते समय वह टिफिन एवं पानी की बोतल भी साथ नहीं रख पाया था।
अंदर से जज साहब के नौकर ने आकर यह खबर दी थी कि साहब लोग खाना खा रहे हैं ;अत: कुछ समय लगेगा।
वह सोच में पड गया–‘‘अंदर साहब लोग भोजन कर रहे हैं और बाहर वह भूख प्यास से व्याकुल हो रहा है. डायबिटीज़ की बीमारी के कारण भूखा रहना उसके लिए वैसे ही आफ़त है !
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