विकराल बाढ़ के हस्ताक्षर अभी पूरी तरह सूख भी नहीं पाए थे कि सूखे ने आदमी के गाल पर दनादन चाटें जड़ दिए.
जिधर भी नज़र जाती वीरानी ही वीरानी नजर आती .पानी को लेकर त्राहि-त्रहि सी मच गई थी .इस आपदा से निपटने के लिएकई सरकारी योजनाऒं की घोषणाएँ की गईं, लेकिन तत्काल कोई कारगर व्यवस्था नहीं बन पायी.
एक ज्योतिषी ने अपना पोथा खोलते हुए बतलाया कि पुराने जमाने में राजा-महाराजा किसान बनकर हल चलाया करते थे,तब जाकर वर्षा का योग बनता था. अब राजा महाराजाओं का ज़माना तो रहा नहीं ,यदि कोई शीर्षस्थ नेता हल चलाकर यह दस्तूर पूरा करे तो निःसन्देह बारिश हो सकती है.
एक नियत समय पर एक नेता को हल चलाकर दस्तूर पूरा करना था .खेत के चारों ओर लोग खड़े होकर अपने नेता को हल चलते हुए देखना चाहते थे. जयघोष के साथ नेताजी का प्रवेश हुआ और उन्होंने आगे बढ्कर हल की मूठ पकड़्कर बैलों को आगे बढ्ने का इशारा किया. हल की फ़ाल जैसे ही जमीन में दबी पड़ी हड्डी से टकराई. एक आवाज आयी-‘’कौन है कम्बखत, जो हमें मरने के बाद भी चैन से सोने नहीं दे रहा है।"
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