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लघुकथाएँ - देश - सुरेन्द्र कुमार पटेल
सोशल साइट्स

गर्मी की छुट्टियाँ बिताने मैं अपने घर आया हुआ था।सोचा, यार-मित्रों से भी मिलता चलूँ।मेरे बचपन के एक मित्र हैं ।उनको काल किया।वे घर पर ही थे।
तय वक्त पर मैं उनके घर पहुँच गया। दरवाजा खटखटाया।उन्होंने
भीतर से ही मुझे अंदर आने को कहा।मैं आहिस्ता-आहिस्ता उनके करीब पहुँच
गया।
'आइए,आइए’- कुरसी से उठने का अभिनय करते हुए उन्होने कहा।उन्होने उचटी हुई नजरों से मुझे देखा फिर सामने रखे लैपटाप कम्प्यूटर में घुस गए।मैं सामने रखी कुर्सी में चुपचाप धँस गया।मैं उन्हें देखता रहा,मगर मेरी उपस्थिति का उन पर कोई प्रभाव नहीं
पड़ा।कई मिनटों तक सन्नाटा छाए रहने के बाद उन्होने मुँह खोला,'ड्यूटी से कब आना हुआ?'
'अभी पिछले सप्ताह ही आया हूँ’-मैने उत्सुकता से उत्तर दिया किंतु मुझे
यकीन है ,मेरे उत्तर से उन्हेँ कोई मतलब नही था।वह कम्प्यूटर पर नज़र
गड़ाए हुए थे और मैं उन पर।थोड़ी- थोड़ी देर में उनके चेहरे में अचरज भरी मुस्कान बिखर जाती, जिसे देख प्रतिक्रिया स्वरूप मेरे भी होंठ बड़े हो जाते। कुछ देर में चाय आई ,उन्होने चाय को एक बार होठों से लगाकर रख दिया
था।चाय ठण्डी हो रही थी।उन्हें कोई परवाह न थी।
मैं चाय खत्म कर चलने ही वाला था कि एक बार उन्होने फिर से मौन
तोड़ा और बोले,'एक-आध महीने तो रुकेंगे न?'
मैने बताया, 'जी नहीं, बस अगले सप्ताह तक।'. . .फिर मैं यही नही रुका;थोड़ी सी अशिष्टता की।आगे झुककर कम्प्यूटर पर झाँकते हुए मैने पूछा,'क्या बात है ,कम्प्यूटर पर आप कुछ ज्यादा ही व्यस्त हैं ?
मेरे मित्र ने बगैर नज़र टाले बताया ,'कुछ नही यार ! सोशल साइट्स पर
फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड किया था ।देख रहा हूँ ,किस-किसने जवाब दिया।'
'फिर तो मुझे भी मित्रों से मिलने सोशल साइट्स में घुसना चाहिए।यहाँ
बैठकर मैं व्यर्थ ही वक्त बर्बाद कर रहा हूँ’-यह सोचते हुए फौरन मैने
अपने मित्र के घर से विदा ली।
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मो.09893563284 ;ईमेल:surendrasanju.02@gmail.com

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